तालिबान और ईरान के बीच बढ़ती दोस्ती की वजह क्या है?

तालिबान और ईरान के बीच बढ़ती दोस्ती की वजह क्या है?

ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई

पिछले कुछ हफ़्तों से ईरान के सरकारी एवं सबसे ज़्यादा रूढ़िवादी मीडिया संगठनों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे तालिबान की उदारवादी छवि गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और वे तालिबान को ईरानियों को लुभाने के लिए मंच भी प्रदान कर रहे हैं।

तालिबान नेता ईरानी मीडिया समूहों को इंटरव्यू देते रहे हैं। हाल ही में दो मौकों पर तालिबान नेता एक लाइव टीवी कार्यक्रम में अपने चरमपंथी संगठन की नीतियों पर चर्चा करने के लिए शामिल हुए। इसका मूल मक़सद जनता को ये भरोसा दिलाना था कि तालिबान ने अपने पुराने तौर-तरीके छोड़ दिए हैं।

इस समय ईरान सरकार भी तालिबान के प्रति गर्मजोशी दिखाती हुई नज़र आ रही है। सरकार द्वारा तालिबान की उदारवादी छवि गढ़ने की एक वजह ये हो सकती है कि ईरान इस समय तालिबान नेतृत्व वाली सरकार के साथ आर्थिक संबंध बनाने के लिए ज़मीन तैयार कर रहा है।

पुराने तौर-तरीकों की वापसी

अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े से पहले ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई और इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड्स से संबंधित कट्टरपंथी अख़बार ‘केहान’ और ‘जवन’ पर ये आरोप लगाया गया कि वे इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं कि तालिबान सुधर चुका है।

ईरान के सरकारी टीवी चैनल पर भी ऐसे विशेषज्ञों को मंच देने का आरोप है जिन्होंने इसी तरह की बात को सामने रखा. 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से रूढ़िवादी अख़बारों ने अफ़ग़ानिस्तान के हालात के लिए सिर्फ़ अमेरिकी सरकार को दोषी ठहराया है।

दिलचस्प बात ये है कि अख़बारों ने एक चरमपंथी समूह को जीतने की अनुमति देने के लिए अमेरिका की निंदा की है, लेकिन तालिबान की किसी बात पर निंदा नहीं की।

तालिबान के प्रति निंदा की कमी इतनी स्पष्ट थी कि सुधारवादी अख़बार ‘शर्क’ ने 24 अगस्त को लिखा कि ईरान के कट्टरपंथी अपने पुराने रूप में लौट आए हैं और लोगों को ये यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि तालिबान अब बदल चुका है।