वैशाख पूर्णिमा की कथा सुनने से मिलेगा

वैशाख पूर्णिमा की कथा सुनने से मिलेगा वैकुण्ड का धन संपत्ति यश, वैभव, हर कष्ट दूर करेंगे त्रिलोकीनाथ !

वैशाख पूर्णिमा की कथा सुनने से भगवान श्री लक्ष्मी नारायण देंगे वैकुंड की धन संपत्ति हर्ष एवं वैभव तथा हर कष्ट दूर करेंगे भगवान श्री त्रिलोकी नाथ।  आज हम वैशाख माह की दिव्य एवं ज्ञानमई कथा सुनाने जा रहे हैं।

पूर्णिमा तो प्रत्येक माह में आती है और प्रत्येक महीने की पूर्णिमा अपना अपना अलग-अलग महत्व होता है हर वर्ष में 12 पूर्णिमा आती है और सभी पूर्णिमा का अलग-अलग फल प्राप्त होता है लेकिन वैशाख माह की जो पूर्णिमा है उसका विशेष महत्व हमारे धर्म ग्रंथों में बताया है इस पूर्णिमा को महा पूर्णिमा भी कहा गया है। इस पूर्णिमा को सत्य व्रत भी कहा गया है।  क्युकी जब देवताओ का राज्य छीन गया था। उसके पश्चात भगवान श्री हरि नारायण की आज्ञा से समुद्र मंथन हुआ समुद्र से जो अमृत की प्राप्ति हुई थी उस अमृत का प्राणी देवताओं ने किया तथा उनका खोया हुआ साम्राज्य वैशाख माह की पुण्यतिथि के दिन रात हो गया इसीलिए इस पूर्णिमा को महा पूर्णिमा का वरदान प्राप्त दिया गया तथा दोस्तों ने यह भी कहा कोई भी भक्त वैशाख पूर्णिमा के दिन दान तुमने करेगा और अनुष्ठान करेगा उपाय करेगा कथा श्रवण करेगा सुबह जल्दी उठकर के ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करेगा और जो भी अन्य पुण्य कर्म करेगा उसका अनंत गुना सहस्त्र बोला हजारों गुना अधिक फल की प्राप्ति उसको हो सके इसमें कोई भी संशय नहीं है इसलिए वैशाख माह की पूर्णिमा को सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी गई है।  और इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में सभी को स्नान कर लेना चाहिए क्युकी स्नान का इस दिन अधिक महत्व है

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अपने नहाने के बाल्टी में आपको गंगाजल डाल लेना है और उस जल से स्नान कर लेना है। स्नान करने के बाद भगवान सूर्य देव को जल चढ़ाएं। तथा अपने इष्ट देवता घर में देवी देवताओं का पूजन करें और उनके पूजन अर्चन करने के बाद घर के जो बुजुर्ग लोग है बड़े लोग हैं वरिष्ठ लोग हैं उनको प्रणाम करें और उनका आशीर्वाद ले। और इस जैसे तथा को अवश्य सुने बोलिए लक्ष्मी नारायण भगवान की जय ब्रह्मा जी ने कहा कि पूर्व की बात है काशीपुर में कीर्तिमान नाम से विख्यात एक चक्रवर्ती राजा थे वंश के भूषण तथा महाराज के पुत्र थे एक समय गुरु वशिष्ट जी ने उन्हें वैशाख माह के स्नान दान व्रत नियम के विषय में बताया था साथ ही यह भी बताया था कि वैशाख माह का महत्व क्या होता है वैशाख मास स्नान दान की महिमा जानकर के प्रतिमान बहुत प्रभावित हो गए और उन्होंने जन कल्याण के लिए अपने पूरे राज्य में स्थान सबके लिए अनिवार्य कर दिया राजा ने यह घोषणा करवा दी कि प्रत्येक व्यक्ति वैशाख स्नान जरूर करें नहीं तो उनको दंड दिया जाएगा

सभी ने राजा की आज्ञा के अनुसार वैशाख स्नान दान व्रत आदि का पालन किया जैसे सभी मृत्यु के पश्चात विष्णु लोग हो जाते हैं जिससे यामपूरी पूरी तरह सुनी हो गई वहां से सुनी हो गई इससे यमराज दुखी दुखी हो और ब्रह्मा जी से मिलने गए और उन्हें सारी बात बताई तब भगवान ब्रह्मा जी ने फिर से समझाते हुए कहा की धर्मराज राजा कीर्तिमान विष्णु धर्म के पालन में तत्पर है चलो हम लोग भगवान विष्णु के समीप चले और उनको सभी बात बता कर पीछे उनकी आज्ञा अनुसार कार्य करें वह ही धर्म के रक्षक है और वह ही नियमकाक  है। यानी वो भी सारे नियम तैयार करते हैं यमराज जी को आश्वासन देते हुए ब्रह्मा जी ने शिव सागर में भगवान नारायण के पास पहुंच गए वहां उन्होंने सचिन आनंद स्वरूप प्रार्थना की कि हे भगवान ईश्वर श्री हरि विष्णु का सेवन किया भगवान जी की स्थिति से संतुष्ट हो तो क्या भगवान विष्णु प्रकट हो और ब्रह्मा जी की स्थिति से संतुष्ट होकर के भगवान विष्णु और यमराज और ब्रह्मा जी ने तुरंत मस्तक झुका कर के उन्हें प्रणाम किया प्रभु भगवान विष्णु जी ने किस तरह गंभीर वाली है उन दोनों से कहा तुम लोग यहां क्यों आए हो तो ब्रह्मा जी ने कहा की है प्रभु आप श्रेष्ठ भक्त राजा कीर्तिमान के शासनकाल में सभी मनुष्य विशाल धर्म के पालन में संलग्न हो करके आपके अविनाशी पद को प्राप्त हो रही हैं इससे यमपुरी पूरी तरह से शुरू हो गई है

उनके ऐसा कहने पर भगवान विष्णु हंसते हुए बोले मैं लक्ष्मी को त्याग दूंगा मैं अपने प्राण शरीर इसी वक्त यह सभी चीजों को छोड़ दूंगा परंतु अपने सब भक्तों को कभी भी तियाग नहीं कर सकूंगा। जिन्होंने मेरे लिए सब लोगों का त्याग करके अपना जीवन तक हम समर्पित कर दिया है उन्होंने सर्वस्य मुझे समर्पण कर दिया है जो मुझ में मन लगा कर के मेरे स्वरूप को हो गए हैं उन्हें महाभाग्य भक्तों को मैं कैसे तैयार कर सकता हूं और राजा कीर्तिमान को इस पृथ्वी पर मैंने ही 10000 वर्षों की उम्र प्रदान की है उसमें से 8000 वर्ष तो व्यतीत हो गए हैं शेष आयु और बीत जाने पर उसे मेरा संयुक्त प्राप्त होगा। उसके बाद पृथ्वी पर बेन नमक दुष्ट आत्मा राजा होगा। जो संपूर्ण वैदिक धर्म का विरोध कर देगा। उस समय वैशाख माह के धर्म भी छंद बंद हो जाएंगे। बेन अपने हिसाब से नष्ट हो जाएगा तत्पश्चात मैं प्रथम होकर के उन्हें सब धर्मों का प्रचार करूंगा और समय लोगों में वैशाख माह के को धर्म को भी मैं ही प्रसिद्ध करूंगा स्वस्थ मनुष्य में कोई ऐसा होता है जो मुझ में अपने मन प्राण अर्पित करके सर्वोच्च तो मुझे समर्पित कर देता है और मेरा भक्त बन जाता है जो ऐसा होता है वही मेरे धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं।

इस विश्व शांति पावन पवित्र महीने में मैं वैशाख धर्म में तत्पर रहने वाले महात्मा पुरुषों तथा राजा के द्वारा समयानुसार तुम्हारे लिए भाग डलवा लूंगा लोक में जो कोई भी वैशाख माह का वेट करेंगे वह तुम्हें भाग देने वाले होंगे धर्मराज को होना समझाया उनके वैशाख माह में बताए हुए महादेव का पालन में विघ्न कभी भी उपस्थित नहीं करना यमराज को इस प्रकार आश्वासन देकर के भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए जम्मू से भी अपने ब्रह्मा जी भी अपने सेवकों के साथ सत्य लोग चले गए उसके बाद यमराज भी अपने पूरी को पधारे। वैशाख मास की पूर्णिमा को पहले धोखेबाज के उद्देश्य से जल से भरा हुआ  घड़ा( मटका)दहीअन्य दाल करना चाहिए उसके बाद पितरों गुरु और भगवान महा विष्णु के उद्देश्य से शीतल जल जल दही अन्य पाल और दक्षिणा के साथ काशी के पात्र में रखकर के दान पुण्य ब्राह्मण को करना चाहिए भगवान श्री विष्णु के दिव्य प्रतिमा वैशाख माह की महात्मा कथा सुनाने वाले ब्राह्मण को दान करनी चाहिए।   राजा कीर्तिमान ने सब कुछ उसी प्रकार किया उन्होंने पृथ्वी पर वन वंचित फलों का भोग करके शेष आयु पूर्ण होने की पश्चात पुत्रो आदि के साथ श्री विष्णु के धाम को परस्तान किया।  इस प्रकार इस वैशाख माह जो कोई भी सुनता है सुनाता है पढ़ता है उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें परम पद की विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है वैशाख माह की पूर्णिमा की एक और महत्व की कथा आती है जो इस प्रकार है।

एक समय की बात है ब्राह्मण ने पूछा धर्मराज वैशाख माह में कहता है स्नान करके भगवान महादेव का पूजा कैसे करें आप इसकी विधि का वर्णन करें धर्मराज ने कहा है दामन ब्राह्मण पत्तों की जातियां हैं। हम सभी तुलसी और भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय है।  जो बिना स्नान किए देश कार्य एवं पांच कार्य तुलसी का पत्ता पड़ता है उसका सारा रोगो को तत्काल एक हरा जो समाप्त कर देता है उसी प्रकार तुलसी दरिद्रता और धूप आदि से संबंध रखने वाले से अधिक से अधिक पापों को भी शीघ्र नष्ट कर देती है तुलसी जी काले रंग के पत्तों वाली होती है या हरे रंग की उसके द्वारा श्री मधु सुदन का पूजन करने से प्रत्येक मनुष्य विशेषता है भगवान का भक्त नारायण नर से नारायण बन जाता है जो वैश्य तीनों संध्या के समस्त तुलसी दर से भगवान श्री विष्णु जी का पूजन करता है उसका तुम्हें इस संसार में जन्म नहीं होता है फूल और पत्ती के ना मिलने पर अन्य आदि द्वारा धान चावल जो भी अन्य के द्वारा भगवान श्री हरि की पूजा करें।

तब तो शायद भगवान विष्णु की प्रतिमा करें इसके बाद भेजता हूं मनुष्य पुत्रों तथा चराचर का तर्पण करना चाहिए।  जो सब कुछ करने में असमर्थ है स्त्री या पुरुष नैनों से मुक्त होकर के वैशाख की प्रियदर्शी और चतुर्दशी और पूर्णिमा तीनों दिन बस्ती से विधिपूर्वक प्रातः काल स्नान करें तो सभी पापों से मुक्त हो जाता है और इस संसार में सभी प्रकार के धर्म अर्थ काम सुख सभी सुखों को भोक्ता है अंत में मोक्ष प्राप्त को प्राप्त करता हुआ अक्षय स्वर्ग को वह प्राप्त कर लेता है।  जो मनुष्य वैशाख माह में प्रसंता के साथ भक्ति पूर्वक ब्राह्मणों को भोजन करवाता है बहुत दिन बाद तक प्रातः काल 1 बार भी स्नान करके निर्मल सोच का पालन करते हुए श्वेत या काले तिलों को शहद में मिलाकर 12 ब्राह्मणों को दान देता है और उन्हीं के द्वारा स्वस्तिवाचन करवाता है तथा मुझ पर धर्मराज प्रसन्न हो इस उद्देश्य से देवता और पुत्रों को का तर्पण करता है उसके जीवन भर किए हुए पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।  जो वैशाख की पूर्णिमा को मटके का दान करता है जल के घड़े का दान करता है पकवान तथा स्वर्ण में दक्षिणा का दान करता है उसे अष्टमी व्रत का पुण्य प्राप्त होता है इस विषय में प्राचीन इतिहास में एक कथा है वह हम सुनाते हैं।

इसमें एक ब्राह्मण का जिसमें एक ब्राह्मण का भवन के भीतर देशों के साथ सम्मान हुआ था मध्य प्रदेश में 1 धन शर्मा नामक ब्राह्मण रहता था उसमें पार्क का लेश मात्र भी नहीं था 1 दिन बाद शादी के लिए मरने गया वहां उसने अद्भुत बाद देखिए उसे 30 मुहावरे दिखाई दिए जो बड़े ही दुष्ट और भयंकर था।  ब्राह्मण पहले तो उनको देखकर डर गए ओम प्रेतों की केस ऊपर उठे हुए थे लाल-लाल आंखें थे काला चले उसके बाद तो और सुखा हम तो ठीक था ब्राह्मण ने उनसे पूछा तुम लोग कौन है यह नर्क जैसी अवस्था तुम्हें कैसे प्राप्त हुई। मैं भय से आतुर हु और दुखी हु मेरी रक्षा करो मैं भगवान विष्णु का दास हूं मेरी रक्षा करने से भगवान तुम्हारी लोगों का कल्याण करेंगे भगवान विष्णु  आप की ओर से संतुष्ट हो जाएंगे।  श्री विष्णु का अलसी के समान वर्ण है वह पितांबर धारी है उनका शव अंकन मात्र से सभी पापों का क्षय हो जाता है। भगवान आदि एवं शत्रु चक्र एवं गधा करने वाले हैं अविनाश कमल के समान मित्रों वाले तथा प्रेत को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं यमराज कहते हैं कि है ब्राह्मण भगवान श्री विष्णु का नाम सुनने मात्र से वह संतुष्ट हो गए।

उनका भाव पवित्र हो गया। वह दया और उदारता की वशीभूत हो गए। भ्रह्मां के कहे हुए वचन के अनुसार उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और उनकी पूछने पर जहर कुछ इस प्रकार बोले प्रेत बोले हे विप्रदेव तुम्हारे दर्शन मात्र से तथा भगवान श्री हरि का नाम सुनने से हम इस समय दूसरे ही भाव को मुक्त हो गए हैं हमारा भाव बदल गया है हम दयालु हो गए हैं। अब हम लोगों के नाम सुनो पहले जो है उसका नाम कृतक नाम का प्रयोग है , दूसरे का नाम विधिवत है और तीसरा जो मैं हूं मेरा नाम अभिषेक है इन तीनों में मैं अधिक पापी हूं इस प्रथम पापी ने सदा ही कृतज्ञता की है अतः इसके क्रम के अनुसार उसका नाम कृतज्ञ हो गया किए गए उपकार को ना मानने वाले को कृतज्ञ कहा जाता है। हे ब्राह्मण यह पूर्व जन्म में सुदास नामक द्रोही मनुष्य का स्वभाव ही कृतज्ञ किया करता था उसी पाप से यह इस अवस्था को प्राप्त हो गया अत्यंत पापी धूर्त गुरु और शमी का अर्जित करने वाले मनुष्य के लिए भी पापा से छूटने का उपाय है परंतु रिटर्न के लिए कोई भी प्रायश्चित बिल्कुल भी नहीं है इस दूसरे पापी में देवताओं का पूजन किए बिना ही अन्य को भोजन किया है ग्रहण किया है

इसमें गुरु और ब्राह्मणों को कभी भी दान नहीं दिया है इसलिए उसका नाम विधिवत हुआ जिन्हें पूर्व जन्म में खड़ी हुई नाम से जाना जाता था 10000 गांव में इसका अधिकार था जय घोष अहंकार और नास्तिकता के कारण गुरुजनों का उल्लंघन करने में हमेशा तत्पर रहता था प्रतिदिन पंच महायज्ञ का अनुष्ठान किए बिना ही यह भोजन करता था और ब्राह्मणों की निंदा किया करता था उसी प्राप्त के कारण यह बड़े-बड़े कष्ट भोग करके विधिवत नाम का प्रयोग कर चुका है।  और जो मैं हूं वह मेरा नाम है आवश्यक है। मैं तीसरा करता हूं मैं पूर्व जन्म में ब्राह्मण था मध्यप्रदेश में मेरा जन्म हुआ था मेरा नाम गौतम था और गोत्र भी गौतम ही था वास पुर गांव में निवास करता था मैंने वैशाख महीने में माधव की प्रशंसा के उद्देश्य से कभी भी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान नहीं किया दान और हवन भी नहीं किया विशेषता वैशाख महीने में से संबंध रखने वाला कोई भी कर्म मैंने कभी भी नहीं किया वैशाख में मधुसूदन का कभी भी पूजन नहीं किया तथा सिद्धांतों को दान आदि से तृप्त नहीं किया वैशाख माह की किसी भी पूर्णिमा को पूर्ण फल प्रदान करने वाला कोई भी कर मैंने नहीं किया। मैंने स्नान दान शुभ कर्म तथा पुणे के द्वारा उसके व्रत का पालन भी नहीं किया इसलिए मेरा नाम आवश्यक हो गया। प्रेत हो करके में और विचरता हु। हम तीनों के प्रेत योनि पर पढ़ने का जो कारण है

वह मैंने आपको बताया है अब तुम हम लोगों का पाप से उद्धार करो क्योंकि तुम ब्राह्मण हो और ब्राह्मण पुण्य आत्मा होता है साधु तीतरों से भी बढ़कर होता है वह शरण में आए हो महान पाप से तर देते है।  जो मनुष्य गंगा आदि संपूर्ण तिथि स्नान करता है जो सदा साधु पुरुषों का संगम रखता है उनमें साधु संग करने वाला ही पुरुष शेष है अतः तुम मेरा बिहार करो अब तो मेरा एक पुत्र है जो तुम उसी के पास जाकर यह सारी बातें करो हमारे लिए इतना परिश्रम करो जो दूसरों का कार्य उपस्थित होने पर उसके लिए उद्योग करता है उसे उसका फल मिलता है वह यज्ञ दान और शुभ कर्मों से भी अधिक फल का भागी होता है यमराज कहते हैं कि है ब्राह्मण उस प्रेत का वचन सुनकर के धनिया शर्मा को बड़ा दुख हुआ उसने यह जान लिया कि यह मेरे पिता है जो नाक में पड़े हुए हैं सर बताएं वह अपनी निंदा करते हुए बोला धर्म शर्मा ने कहा है स्वामी मैं ही गौतम का यानी आपका पुत्र हूं मैं आपके किसी काम ना आया मेरा जन्म निरर्थक है जो आलस्य को छोड़ कर के अपने पिता का उद्धार नहीं करता है वह अपने को पवित्र नहीं कर पाता है जो इस लोक और परलोक मैं भी सुख का साधक नहीं बनता है

वह संतान किस काम की है विस्तार कर सके वही संतान या तने माना जाता है इस लोक में धर्म की दृष्टि से पुरुष के दो ही गुरु हैं पिता व माता इनमें पिता ही शेष है क्योंकि सर्वस्व बीच-बीच की ही प्रधानता देखी जाती है पिताजी क्या करूं कहां जाऊं कैसे आपकी आपकी जाती होगी मैं धर्म का तत्व नहीं जानता केवल आपकी आज्ञा का पालन ही करूंगा वह प्लीज बोला कि बेटा घर जाओ और यमुना जी में विधिवत स्नान करो आज से ठीक 5 दिन वैशाखी पूर्णिमा आने वाली है जो सब प्रकार की उत्तम गति को प्रदान करने वाली है तथा देवता और पुत्रों के पूजन के लिए उपयुक्त है उस दिन पितरों के निमित्त भक्ति पूर्वक सुनिश्चित जल का घड़ा दान करना चाहिए उस दिन जो स्वाद होता है वह पितरों को हजार वर्षों तक आनंद प्राप्त करने वाला होता है जो वैशाखी पूर्णिमा को विधि पूर्वक स्नान करके 10 बार ब्राह्मणों को खीर का भोजन कर आता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है जो धर्मराज की प्रशंसा के लिए 10 जल से भरे हुए सात घोड़े दान करता है वह 7 पीढ़ियों को तार देता है बेटा त्रयोदशी चतुर्दशी ब्रायन होकर के स्नान दान और हवन। और उससे जो फल प्राप्त हो रहा है रुको को समर्पित कर देना यह दोनों जो रेट है यह मेरे परिचित हो गए अतः इन्हें छोड़ के अवस्था में छोड़ कर के मैं स्वर्ग नहीं जाना चाहता इन दोनों के पापों का भी अंत का समय आ चुका है

यमराज कहते हैं कि ब्राह्मण बहुत अच्छे कर्म श्रेष्ठ अपने घर चला गया वहां जाकर उसने सब कुछ उसी तरह किया वह प्रसंता पूर्वक परम भक्ति के साथ वैशाख स्नान और दान करने लगा और वैशाखी पूर्णिमा आने पर उसमें आनंद पूर्वक भक्ति से स्नान किया और बहुत सावधान करके सबको प्रथक प्रथक दान किया उस पवित्र दान के सहयोग से वह सब आनंद मंगल हो करके इस मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं और विमान में बैठकर के स्वर्ग को चले गए ब्राह्मणों में शेष वर्धन शर्मा भी सूची और पुराणों का गाता था वह रतन काल में भोग प्राप्त कर करके उत्तम लोक को प्राप्त हो गया ऐसा अथवा अथवा वैशाखी पूर्णिमा परम पुण्य में और सभी विश्व को प्राप्त करने वाले इस कथा को जो कोई भी सुनता है सुनाता है उसका है सारा जीवन धन्य हो जाता है अतः मैंने इसका समय संक्षेप में सभी गुण बता दिया है वैशाख माह पुण्य प्राप्त करके जो मनुष्य के साथ नहाने सवेरे सवेरे जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि करके संपूर्ण नियमों से युक्त होकर के भगवान लक्ष्मी पति की आराधना करता है वह निश्चय ही अपने पापों का नाश कर डालता है जो चाहता है कि श्री हरि विष्णु जी के लिए गंगाजल की डुबकी लगाते हैं उन्हीं मनुष्य में समय का सदुपयोग किया है वही मनुष्य धन तथा पात रहे थे वैशाख माह में प्रातः काल नियमित हो करके मनुष्य पीठ में स्नान करके सर बढ़ाता है उस समय श्री माधव स्मरण और नाम के उसका एक-एक पग में यज्ञ समान पुणे देने वाला होता है श्री हरि चेतन वैशाख माह के व्रत का पालन किया जाए तो यह मेरी पर्वत के समान बड़े पापों को जलाकर के भस्म कर डालता है।

26 मई 2021 को वैशाख पूर्णिमा है।

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