सावन का तीसरा सोमवार – सावन के तीसरे सोमवार व्रत कथा सुनने से मिलेगा भगवान शिव व माता पार्वती का भरपूर आशिर्वाद
सावन के सोमवार सबसे बड़े सोमवार होते है। वैसे तो साधारण सोमवार , 16 सोमवार , और सावन के सोमवार तीन प्रकार के सोमवार माना गए है। लेकिन सावन के सोमवार को सबसे बड़े सोमवार माने गए है। सावन सोमवार के दिन भगवन भोले नाथ का विशेष पूजन अर्चन करना चाहिए। शाम के समय सूर्य अस्त के पूर्व भोजन करना चाहिए। जो मनुष्य सावन के सोमवार का व्रत करते है उन्हें सावन की व्रत कथा ब्राह्मण में मुख से ही सुन नी चाहिए। कथा सुनने के बाद अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा भी देनी चाहिए।
व्रत कथा –
एक नगर में एक साहूकार निवास करता था। उसके घर में किसी भी प्रकार की कामी नहीं थी परन्तु उसको दुख यह था की उसके घर में कोई भी पुत्र नहीं हुआ था। ऐसी चिंता में वह दिन रात परेशान रहता था। साथ ही वह हर सोमवार को व्रत रखता था। पूरी भक्ति के साथ भगवन शिव जी की पूजा किया करता था। भगवन शंकर जी के सामने एक दीपक भी जलाया करता था। उसकी भक्ति भाव को देख करके श्री पार्वती जी ने भगवन शंकर जी से कहा – ” यह साहूकार आपका बहुत ही बड़ा भक्त है। यह आपकी बड़ी भक्ति भाव से पूजा अर्चना किया करता है। आपको इसकी मनोकामना अवश्य ही पूरी करनी चाहिए।” भगवन शंकर जी ने कहा की मनुष्य को उसके सभी कर्मो का फाल इसी जन्म में भुगतना पड़ता है। पार्वती जी ने कहा की आप अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करते , उनकी सभी मनोकामना पूरी करते है अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो भक्त आपकी पूजा को करेंगे , आप से अपनी परेशानी के हाल क्यों मांगेगे।
यह सुनकर भगवन शंकर जी ने कहा इसका कोई पुत्र नहीं है ऐसे लिए ये मनुष्य परेशान रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी में इसे पुत्र का वरदान देता हु। परन्तु किसका पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। 12 वर्ष ही आयु हो जाने पर इसके पुत्र की मित्यु हो जाएगी। मैं और कुछ इस के लिए और कुछ नहीं कर सकता हूँ। यह सब बाटे वह साहूकार सुन रहा था। ऐसे उसे ना कोई ख़ुशी हुई और न ही कोई दुःख हुआ। वह पहले जैसा महादेव की पूजा अर्चना करता रहा। कुछ महीनो बाद ही उसकी पत्नी गर्वती हुई। और 10वे महीने में उसके गर्व से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशियाँ मनाई गई। लेकिन साहूकार ने उसकी 12 वर्ष जान करके कोई खुशियाँ जाहिर नहीं की। नहीं किसी को इस प्रकार का भेद बताया। जब वह बालक 11 वर्ष का होगया तो उसकी माता ने उस के विवाह अदि करने को कहा। परन्तु साहूकार कहने लगा अभी विवाह नहीं करुगा। इस बालक को काशी में विशेष अध्यन के लिए भेजुंगा। उस साहूकार ने उसके मामा बुलाकर कहा इस को काशी ले जाओ अधिक अध्यन के लिए और साथ ही में उसे बहुत सा धन भी दे दिया। और जाते समय मार्ग में जो भी आगे उसके दर्शन करते हुए जाना। और भ्राह्मणो को दान भी करना साथ में उनकी सेवा भी करना। यह सब सुन क्र दोनों काशी के लिए निकल गई। रास्ते में एक शहर पड़ा उस शहर के राजा की पुत्री का विवाह था। दूसरे राजा का पुत्र जो बारात लेकर आया था वह एक आँख से अँधा था। उसके पिता जो इस बात की भरी चिंता थी की वर को देख कर कन्या दुखी न हो जाए। और विवाह की कोई अर्चन ना आये।
तब ही उसने सेठ के पुत्र को देखा तो सोंचा की क्यों ही न इसे ही वर बना करके ले जाऊ। तो यह कार्य बड़ी सुंदरता से सम्पन हो जाएगा। लड़के के पिता ने सोचा की विवह के सभी कार्य इसी से करवा दिया जाए तो कोई बुराई नहीं है। फर यह प्रस्ताव ले कर लड़के के पिता सेठ के पुत्र के पास गए और बोला अगर आप यह कार्य करवा देते है तो मैं आपको इसके बदले बहुत सारा दान दुगा। उन्होंने भी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। अभी कार्य भी अच्छे सम्पन हो गया। परन्तु जाते जाते लड़के ने दुल्हन के पलु पर लेख दिया की तुम्हारी शादी तो मेरे साथ हुई है मगर जिसके साथ तुम बेजा जाएगा वह एक आँख से काना है। मैं तो कशी पढ़ने जा रहा हु। जब उस राज कुमारी ने अपने पलु पर यह लेखा हुआ पढ़ा तो उसने राज कुमार के साथ जाने से मन करे दिया। उसने कहा की यह मेरा पति नहीं है मेरा विवह किसी हुआ है। और वह कशी पढ़ने गया है। लड़की के माता पिता ने उसकी साथ विदा नहीं किया। राजा को खली हाथ जाना पड़ा। वही उस सेठ का लड़का और उसके मामा कशी पहुंच गए। वह जारकर उन्होंने याग शुरू कर दिया और लड़के ने पढ़ना शुरू क्र दिया। लड़के की शिक्षा शुरू हो गई थी।
जब उस बालक की आयु 12 वर्ष की हो गई तब भी वह याग चल रहा था। उस दिन लड़के ने अपने मामा से कहा की उसकी ताबिया आज ठीक से नहीं लग है। लड़का अंदर जार सो गया और थोड़ी देर में उस के प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने देखा की यह तो मर गया था इसकी स्वास नहीं चल तो उसको बड़ा दुःख हुआ। मामा ने सोचा अगर में अभी रोना पीटना शुरू क्र दुगा तो याग का कार्य बिच में नहीं रुक जाएगा। याग के ख़तम होते ही उसके मामा ने रोना पीटना शुरू कर दिया। सहयोग वर्ष उसी समय वह से माता पार्वती और भगवन शंकर गुजर रहे थे। माता पार्वती कहने लगी कोई दुखियाँ यहाँ रो रहा है इसके दुखो को दूर करो। तो शंकर जी बोले इसकी आयु इतनी ही थी जो यह भोग चूका है। माता पार्वती ने बोला की इस बालक को गौर आयु प्रदान करदो।
अन्यथा इसके माता पिता तरप तरप कर मर जाएगे। बार बार अनुरोध करने पर शिव जी ने उसे उसके पर्ण वापिस कर दिया। और शिव जी की किरपा से वह जीवित हो गया। शिव पारवती वह से कैलाश पर्वत की ओर चेले गए। फर याग पूरा करते ही दोनों अपने घर की और चले गए। वापस जाते वक्त भी उसी शहर में आए जहा उसका विवाह हुआ था। उस शहर में आकर लड़के ने यज्ञ किया फर उसके सहूर ने उसे पहचान लिए। उसे अपने महल में ले जा करके उसका बड़ा आदर सदकर किया। बहुत सारा धन भी उसको दे करके अपनी बेटी को लड़के के साथ विदा कर दिया। वह से निकल के लड़के के मामा ने कहा की मै पहले जाता हु। और यह समाचार तुम्हारे माता पिता को देता हु फर तुम आना। लड़के के माता पिता छत पर बैठे हुए थे और यह पर्ण किया था की अगर उसका पुत्र वापस नहीं आया तो वह छत से ही कूद जाएगे। पर मामा ये जब बताया की उनका पुत्र सही सलामत है और साथ में बहु और अभूत सारा धन लाया है तो वह अत्यंत खुश हुए।
फर साहूकार ने तीनो को घर में बुलाकर बड़े धूम धाम से जश्न मनाया। साहूकार बड़ा खुश हुआ और साथ ही भगवन शिव की और भी अच्छे तरीके से पूजा अर्चना करने लगा। उसके साथ उसका पूरा परिवार भगवन शिव की पूजा अर्चना करने लगे और ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे।
इस कथा को सुनेसे ही मनुष्ये का कल्याण होता है। जो भी महुष्य व्रत रखते है उनको यह व्रत कथा जरूर सुन्नी चाहिए।