Ahoi Ashtami 2021 ;- अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त पूजन विधि और व्रत कथा & आरती
Ahoi Ashtami :-
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा पाठ करने का विधान है। इसलिए अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। अहोई अष्टमी के दिन सभी मताये अपने पुत्रो के लिये सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्येदय से लेकर रात में आकाश में तारे निकलने तक निर्जला व्रत रखती है। और उसके बाद रात में तारे देखकर के बाद ही अपना व्रत खोलती है। कुछ महिलाये चाँद को देखकर ही व्रत खोलती है। लेकिन ऐसा करना बहुत ही कठिन होता है। क्योकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चाँद देरी से निकलता है। और देश इ कई भागों में महिलाये संतान प्राप्ति और अपने संतान के लिये लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करते हुये पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना करती है। शास्त्रीय विधि से पूजा और व्रत करने से अहोई माता संतान की लंबी आयु और पुत्र प्राप्ति का आशर्वाद देती है।
अहोई अष्टमी के दिन निर्जल रखती है। व्रत। :–
अहोई अष्टमी कानिर्जल व्रत करने के लिये सभी मताये अपने पुत्रो के लिये सुबह जल्दी उठकर स्नान करके,एक सादे करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर रखती है। और इसके बाद अपने संतान के लिये लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करते हुये पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना करती है।और इस दिन मताये पुरेदिन निर्जल व्रत रखती है। और उसके बाद रात में तारे देखकर के बाद ही अपना व्रत खोलती है। कुछ महिलाये चाँद को देखकर ही व्रत खोलती है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त :-
अहोई अष्टमी का व्रत :28 Oct 2021 को बृहस्पतिवार के दिन रखा जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त शुरू 05:39 PM से 06:56 PM तक
समय अवधि : 1 घंटा 17 मिनिट
रात में तारा देखने का समय :6 बजकर 03 मिनिट पर
अहोई अष्टमी को चाँद निकलने का समय :11 बजकर 29 मिनिट पर
अहोई अष्टमी के व्रत की पूजन विधि :-
अहोई माता की पूजा करने के लिए गाय का देशी घी में हल्दी मिलाकर दीया तैयार करते है।अहोई माता के हल्दी ,केसर ,धूप ,रोली ,मोली ,पुष्प और चावल की खीर का प्रसाद बनाकर भोग लगाये। पूजा करने के बाद किसी गरीब कन्या को दान से शुभ फल मिलता है।पर पीले कनेर के फूल जरूर से चढ़ाये। और इसके आलावा अपनी संतान के जीवन में आने वाली सभी समस्याओ से बचने के लिये माँ गोरी और अपनी सांस या ननद को साडी और सुहाग का सारा सिंगार देकर, फिर पैर छूकर देना चाहिये। और उनका आशीर्वाद प्राप्त करे।
अहोई पूजन के लिये शाम के समय घर की उतर दिशा की दीवार पर गेरू या पिली मिट्टी से आठ बॉक्स (कोलम )की एक पुतली बनाई जाती है। महिलाये तारे या फिर चाँद के निकले पर महादेवी का षोडशोपचार पूजन करे। फिर रात में तारे निकले के बाद तारो को जल से अर्ख देकर व्रत खोलती है।
यह भी एक है। परम्परा :-
कुछ लोग एक धागे में अहोई व दोनों चांदी के कुछ दाने डालते है। फिर हर साल एक नया दाने जोड़ने की परम्परा है। और फिर पूजा के लिए घर की उतर दिशा में जमीन पर गोबर और चिकनी मिट्टी से लीपकर कलश स्थापना करती है। और उसके बाद प्रथम पूजा भगवान श्रीगणेश की पूजा के बाद अहोई माता की पूजा और फिर उन्हें दूध ,शक़्कर और चावल का भोग भी लगाते है। उसके बादएक चौकी/पाटा पर पानी से भरा कलश स्थापित कर अहोई माता की व्रत कथा सुनते है।
अहोई अष्टमी की व्रत कथा / (Story )कहानी :-
प्राचीन समय की बात है। एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुये और एक बेटी थी। साहूकार की बेटी विवाहित ( शादी -सुदा)थी वह दीपावली पर अपने मायके (पीहर )आती है। दीपावली की साफ सफाई के दौरान घर लीपने के लिये अपनी भाभियो के साथ जोहड़े ( जंगल) में मिट्टी लाने जाती है।जोहड़े में मिट्टी खोदते हुये। साहूकार की बेटी के हाथ से साही (मिट्टी का घर बनाकर रहने वाला जीव ) के बच्चे मर जाते है। जहाँ पर खुरफी से मिट्टी खोद रही थी ,उस जगह पर साही का घर था ,जिसमे उसके सात बच्चे थे। खुरफी लगने से साही के बच्चो की मृत्यु हो जाती है।
तभी साही वहां आती है और अपने बच्चों को मारा हुआ देखकर दुखी होती है क्रोध में साहूकार की बेटी को शाप देती है की जैसे मेरे बच्चों को मारा हुआ देखकर दुखी होती है क्रोध में साहूकार की बेटी को शाप देती है जैसे मेरे बच्चों की मृत्यु से में निसंतान हो गई हूँ ऐसे ही तुम भी निसंतान रहोगी, में तुम्हारी कोख बाँध दूंगी। साहूकार की बेटी के कोई संतान नहीं थी और उसकी सभी भाभियों के बच्चे थे। इस पर वह अपनी सातों भाभियों से विनती करती है की मेरी जगह आप अपनी कोख बंधवा लीजिए लेकिन कोई भी भाभी इसके लिए तैयार नहीं होती। आखिर में सब्सि छोटी भाभी से अपनी ननद का दुःख नहीं देखा जाता और वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लेती है।
घर जाकर सभी को लगता है कि इस तरह साही का शाप भी हो गया और उनकी ननद की गृहस्थी भी बच गई लेकिन जिस भाभी ने अपनी कोख बंधवाई थी, कुछ ही दिन बाद उसके बच्चों की मृत्यु हो जाती है। वह एक ग्यानी पंडित को बुलाकर इसका कारण पूछती है तो पंडित उसे सुरही गाय की सेवा करने के लिए कहते हैं। वह पूरे मन से सुराही गाय की सेवा में जुट जाती है। इससे प्रसन्न होकर सुराही गाय उसे साही के पास ले जाती है। सुरही गाय साही से विनती करती है कि वह छोटी बहु को अपने शाप से मुक्त कर दे।
साही को छोटी बहु के बच्चों की मृत्यु के बारे में सुनकर बहुत दुख होता है, साथ ही वह उसकी द्वारा सुरही गाय की सेवा देखकर भी खुश होती है। तब साही छोटी बहु को अपनी शाप से मुक्त कर देती है। फिर सुरही गाय और साही दोनों उसे सौभाग्यवती रहने और संतान प्राप्ती का आशीर्वाद देती हैं। दोनों के आशीर्वाद से छोटी बहु की साड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मुख्य रूप से अहोई अष्टमी का व्रत संतान सुख व संतान की समृद्धि के लिए करते हैं। इस दिन निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना के साथ यह व्रत करते हैं। दरअसल, इस दिन लोग देवी पार्वती के अहोई स्वरुप से अपनी संतान की सुरक्षा, लम्बी आयु,उसके अच्छे स्वस्थ्य, सुख – समृद्धि की कामना करते हैं। निशांतन लोग संतान प्राप्ति की कामना के लिए पूरी निष्ठां और श्रद्धा से पूजा – पाठ करते हैं। इस दिन अधिकतर घरों में महिलाएं कच्चा खाना (उरद – चावल, कढ़ी – चावल इत्यादि) बनती हैं।
श्री अहोई माता की आरती
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता।। जय
ब्रह्माणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय
माता रूप निरंजन सुख संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावता नित मंगल पाता।। जय
तू ही है पातल बसंती तू ही है सुख दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय
जिस घर थारो वास वही में गुण आता।
कर न सके सोई कर लें मन नहीं घबराता।। जय
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता।
खान – पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकूँ कोई नहीं पाता।। जय
श्री अहोई मान की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय