षट्तिला एकादशी वर्ष 2021: जानें शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि
षट्तिल एकादशी को माघ कृष्ण पाश की एकादशी तिथि के नाम से भी जाना है। मान्यतानुसार इस दिन तिल का बहुत ही खास महत्व होता है, जिस कारण माघ कृष एकादशी तिथि को षट्तिल एकादशी भी कहा जाता है। इस बार षट्तिल एकादशी 7 फरवरी, 2021 रविवार के दिन पड़ेगी। तो चलिए जानते है षट्तिल एकादशी का शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि के बारे में।
- षट्तिला एकादसी शुभ मुहूर्त:-
एकादशी की समाप्ति 8 फरवरी, तड़के सुबह 4:48 तक रहेगी।
इमेज नतीजे" />
- षट्तिला एकादसी व्रत कथा:-
एक बार की बात है। भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सच्ची घटना सुनाई और साथ ही साथ षट्तिला एकादशी के ख़ास महत्व के बारे में भी बताया।
प्राचीन समय की बात है, पृथ्वीलोक पर एक ब्राह्मणी निवास करती थी। वह ब्राह्मणी हमेशा व्रत करती थी पर कभी भी दान पुण्य नहीं करती थी। एक बार उस ब्राह्मणी ने लगातार एक माह का व्रत रखा। इस व्रत के कारण उस ब्राह्मणी का शरीर बहुत कमज़ोर हो गया और तब भगवान विष्णु ने सोचा की ब्राह्मणी ने व्रत कर अपना शरीर पवित्र कर लिया है। शरीर पवित्र होने से उसे विष्णु लोक में स्थान तो प्राप्त होगा पर ब्राह्मणी ने कभी भी अन्न का दान नहीं किया था। उस ब्राह्मणी को तृप्ति के लिए दान – पुण्य बहुत जरूरी था इसलिए भगवान विष्णु ने सोचा कि वह भिखारी का वेश ले कर उस ब्राह्मणी के पास जाएंगें और उससे भिक्षा मांगेगे। और यदि वह ब्राह्मणी दान दे देती है तो उसको तृप्ति मिल जाएगा। फिर भगवान विष्णु भिक्षु के वेश में ब्राह्मणी के घर पहुँचते है। तभी ब्राह्मणी भगवान विष्णु जी से पूछती है – क्या काम है आपको? तभी विष्णु जी बोले, मुझे भिक्षा चाहिए। यह सुनकर उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक ढे़ला विष्णु जी के भिक्षापात्र में डाल दिया। विष्णु जी उस मिट्टी के ढेले को लेकर लौट आये।
कुछ दिनों के बाद उस ब्राह्मणी ने अपना शरीर त्याग स्वर्ग में आ गई। ब्राह्मणी को स्वर्ग में हर सुविधा तो मिल गई परन्तु सेवन करने हेतु अन्न का एक दाना तक नहीं मिला। जिस कारण ब्राह्मणी घबराई और भगवान् विष्णु के पास गई और बोली मैंने आपके लिए कई सारे व्रत रखे साथ ही साथ पूजा अर्चना की उसके बाद भी मुझे स्वर्ग में अन्न का एक दाना नहीं। ऐसा किस वजह से? जिसका जवाब भगवन विष्णु ने दिया, आप अपने घर जाइये, तुम्हे मिले के लिए देवस्त्रियाँ आएगी। जब वह सब आए तो अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षट्तिल एकादशी की विधि और महत्व के बारे में पूरा सुन्ना उसके बाद ही द्वार खोलना और फिर उनका स्वागत करना। उसके बाद ब्राह्मणी ने ठीक ऐसा ही किया और जानकारी मिलने के बाद ही अपना द्वार खोला। देवस्त्रियों ने देखा कि वह ब्राह्मणी न तो आसुरी है और ना ही गांधर्वी है और वह पहले जैसे मनुष्य रुप में ही थी जिसके बाद उस ब्राह्मणी को दान ना देने का पता चला। इसके बाद ब्राह्मणी ने षट्तिल एकादशी का व्रत रखा, जिसके बाद ब्राह्मणी के सभी पाप नाश हो गए और वह और भी पवित्र हो गई साथ ही साथ वह रूपवती भी हो गई। इसके बाद ब्राह्मणी का पूरा घर अन्न की भर गया।
- षट्तिल एकादशी पूजा विधि:-
षट्तिल एकादशी के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर व्रत का प्रण लें। अब अपने सभी सफाई के कार्यों को पूरा करके स्नान कर लें। अब भगवान श्री कृष्ण की पूजा कर लें। इस दिन और रात को सोए नहीं और दिप, धुप आदि चीज़ों से रात को दीपदान करें। षट्तिल एकादशी की सारी रात जाग कर भजन और कीर्तन करें और अपनी की गई गलती की क्षमा मांगे। अगले दिन षट्तिल एकादशी की तरह ही करें। अब ब्राह्मण को सम्मानपूर्वक आमंत्रण करें और उनको भोजन करा कर दान – दक्षिणा करें। इस दिन भोजन बनाने के लिए सामान्य नमक का उपयोग न करें और सभी विधि और नियमों का आदरपूर्वक पालन करें।