गुरुवार की व्रत कथा ,महत्व &पूजन विधि व सामग्री 2020 :
गुरुवार का व्रत करने से बृहस्पति देव बहुत खुश होते है। और व्रत की शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से आपकी सभी मनोकामना पूरी होती है और घर में सुख शांति,समृद्धि आती है। गुरुवार का व्रत करने से जीने संतान नहीं होती है। उन लोगो को संतान की प्राप्ति होती है। और जिनके शादी ब्याह में होने में जो रुकावट आ रही है। वो दूर होकर विवाह होने का बहुत जल्दी ही योग बन जाता है। और जिसके घर में आर्थिक तंगी की समस्या होती है।वो भी बहुत जल्दी दूर हो जाती है। और घर में धन – के भंडार भर जाते है। सभी तरह के सुख -सुविधाएं हो जाती है। और बुध्दि, बल ,और विवेक की प्राप्ति होती है।
गुरुवार व्रत पूजन विधि :-
गुरुवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नियमित कार्यो करे। और फिर स्नान करने पीले रंग के कपड़े पहने के बाद में पूजा करे। गुरुवार के दिन पूजा करने के लिए एक पाटा ले उस पर पीला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर बृस्पतिदेव की और गणेश जी की फोटो रखे। और एक तांबा के लोटे में पानी भरकर रखे। एक कटोरी में गुड़ और चना दाल ,और उसमे थोड़ी सी हल्दी डालकर रखे। और पूजा में दो केला रखे। फिर शुध्द देशी घी का दीपक जलाकर , पूजा करना शुरू करे। सबसे पहले बृस्पति देव और गणेश जी को गुड़ का भोग लगाये और दो केले चढ़ाये फिर अपने हाथ पर कलावा बांधकर ,हल्दी का तिलक लगाये ,और फिर कथा सुनना शुरू करे। कथा सुनने के बाद केले की गाछ (पौधा )को जल चढ़ाये और फिर केले की गाछ को कलावा बांधकर,हल्दी का तिलक लगाये ,गुड़ चना की दाल चढ़ाये ,दो केले के फल का जोड़ा चढ़ाये,और फिर केले के गाछ के पास घी का दीपक जलाये और तुलसी के पेड़ में भी जल चढ़कर ,बृस्पति देव की आरती करे।और फिर पूरे दिन गुरुवार व्रत रखे। इस व्रत में पीला और बिना नमक का भोजन करना जरूरी होता है। लेकिन नमक का गलती से भी इस्तेमाल ना करे। हर गुरुवार को ऐसा करने से घर में सुख -शांति और समृद्धि का आगमन (वास ) होता है।
गुरुवार के व्रत की सामग्री :-
पाटा ,पीला कपडा ,एक तांबे का पानी से भरा हुआ लौटा , बृस्पति देव और गणेश जी की फोटो ,दो केले ,गुड़ ,चना दाल ,हल्दी ,कलावा ,धूप ,शुध्द देशी घी दीपक,आदि।
गुरुवार को क्या ना करे:-
गुरुवार के दिन घर में पोछा नहीं लगाना चाहिए ,और बिना साबुन के स्नान करे ,कपड़े नहीं धोना चाहिए ,महिलाओ को गुरुवार के दिन बाल (सिर )नहीं धोना चाहिए ,घर को गोबर से लीपना नहीं चाहिए , बालों की कटिंग नहीं करनी चाहिए ,और गुरूवार के दिन लेन -देन नहीं करना चाहिए। केले की पूजा करते हो तो केला नहीं खाना चाहिए। आदि।
गुरुवार के दिन क्या करे :-
गुरुवार के दिन पीले कपड़े पहने ,पीली चीजों का दान करे।और केले दान कर सकते हो।गरीबों को खाना खिलाये।
गुरुवार के व्रत कथा :
– प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशो में भेजा करता था वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उतना ही दिल खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी बहुत कंजूस थी। वह किसी को भी एक फूटी कोड़ी भी नहीं देना चाहती थी
एक बार जब सेठ दूसरे देश व्यापार के लिए गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु के -वेश आये और उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, में इस दान और पुण्य से बहुत तंक आ गयी हूँ। आप कोई ऐसा उपाय बताए, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और में आराम से रह सकू। क्योकि में इस तरह अपना धन लोगो को दान में नहीं लुटाना चाहती हूँ।
बृहस्पति देव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है? अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ,और किसी कुंवारी कन्या का विवाह कर कन्या दान करो या किसी, विद्यालय में बाग़-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परंतु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई। उसने कहा – मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसका मुझे दान करना पड़े।
तब बृहस्पति बोले, ‘यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करो । सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों (बालों ) को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, अपने कपडे साबुन से धोना और घर में पोछा लगाना , ऐसा करने से तूम्हारा सारा धन नष्ट हो जायेगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतद्धर्यांन हो हए।
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे की उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गया। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर रहने लगा । वहां वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा जताई , लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के निचे बैठे अपनी पूर्व दिशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पतिदेव साधु के रूप में आए और बोले ‘हे बालक तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?’
तब व्यापारी बोला हे, महाराज, आप सब कुछ जानते है। इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पतिदेव बोले ‘देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पतिदेव का अपमान किया था इसलिए तुम्हारी ये हालत हुई है। लेकिन अब तुम चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पतिदेव का पाठ करो दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बाँट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। ऐसा करने से तुम्हारी सभी समस्या समाप्त हो जायेगी। ‘
साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला ‘महाराज मुझे तो इतना भी नहीं बचता की में अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूँ।’ इस पर साधु जी बोले ‘तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हे लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे।’
उसने लकड़ियां काटी और शहर बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयाँ दूर होने लगी, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया।
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पुरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा के अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोजन करने लिए गया। लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री थोड़ी देर पहुंचे, अतः उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर के भोजन कराया। जब वे दोनों लौट कर आए तब रानी ने देखा की उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है। रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह था की उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर दिया गया। कैद में पकड़कर दोनों अत्यत दुखी हुए। वहां उन्होंने बृहस्पति देवता को याद किया।
बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का अहसास कराया और उन्हे सलाह दी की गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हे दो पैसे मिलेंगे। उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना। तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे।
बृहस्पतिवार को कैदखाने के द्वारा पर उन्हें दो पैसे मिले।और देखा की बहार रास्ते में एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकर गुड़ और चने लाने को कहा। इसपर वह स्त्री बोली ‘में अपनी बहु के लिए गहने लेने जा रही हूँ, मेरे पास समय नहीं है।’ इतना कहकर वह चली गयी। थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली, व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा की हे बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड़-चना ला दो।
बृहस्पतिदेव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली ‘भाई में तुम्हे अभी गुड़-चना लाकर देती हूँ। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, में उसके लिए कफ़न लेने जा रही थी लेकिन में पहले तुम्हारा काम करुँगी, उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफ़न लाऊंगी।’
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़-चना और स्वयं भी बृहस्पतिदेव की कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफ़न लेकर अपने घर गइ। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री बोली ‘मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो।’ अपने पुत्र का मुख देखकर उस स्त्री ने उसके मुँह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुनः जीवित हो गया।
पहली स्त्री जिसने बृहस्पतिदेव का अपमान किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मरी की वह घोड़ी से गिरकर मर गया। यह देख स्त्री रो-रोकर बृहस्पतिदेव से क्षमा याचना करने लगी।
उस स्त्री की याचना से बृहस्पतिदेव साधु वेश में वहां पहुंचकर कहने लगे ‘देवी। तुम्हे अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। यह बृहस्पतिदेव का अनादर करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कथा सुनो, तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।’
जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफ़ी मंगी और कथा सुनी। कथा सुनने के बाद वह प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र भी जीवित हो गया । उसी रात बृहस्पतिदेव राजा के सपनो में आए और बोले ‘हे राजन। तूने जिस व्यापारी और उसकी पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिलकुल निर्दोष है। तुम्हारी रानी का हार वही खूंटी पर टंगा है।’
सुबह उठकर , राजा ने देखा की रानी का हार उसी खूंटी पर लटका हुआ था । राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर, उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाया और बहुत सारा दहेज़ भी दिया
गणेश (विनायक) जी महाराज की व्रत कथा/ कहानी
एक गांव में एक सेठ अपने परिवार के साथ रहता था। सेठ का गांव और आस-पास के शहरों में बहुत बड़ा व्यापर करता था। सेठ जी का गणेश जी भगवान पर बहुत विश्वास करता था क्योंकि सेठ का मानना था की उससे परिवार की सुख शांति और ख़ुशीहाली गणेश जी की कृपा से है.सेठ जी रोजना नदी में नहाने जाते थे। और वापस आकर रोज गणेश भगवान की पूजा करता था और पूजा करके रोजाना गणेश जी को भोग (प्रसाद ) लगाता और फिर स्वयं भोजन करता था । यह बात सेठानी जी को अच्छी नहीं लगती थी।क्योकि वो धार्मिक नहीं थी और भगवान की पूजा पाठ में बिल्कुल भी विश्वाश नहीं रखती थी। एक बार सेठानी जी ने सोचा की यह गणेश जी को इतना मानते है, गणेश जी की इतनी पूजा -अर्चना करते है.ज्यादा पूजा पाठ करने से क्या होता है.आज तो में देखती हूँ केसे वो गणेश जी की इतनी पूजा करते है। अगले दिन जब सेठ जी नदी पर नहाने जाते है तो सेठानी जी गणेश जी की मूर्ति को उठाकर उसे मूर्ति को कपडे से ढक कर बगीचे में गड्डा खोदकर गणेश जी मूर्ति गड्डे के अंदर दबा देती है। जब सेठ जी नदी से नहाकर वापस आते है और देखते है की गणेश जी की मूर्ति तो मंदिर में नहीं है तो वो सेठानी जी से पूछते है गणेश जी की मूर्ति मंदिर में नहीं है तो कहा गयी, सेठानी बोलती है मुझे नहीं मालूम। मूर्ति को घर में बहुत ढूंढा लेकिन मूर्ति कही नहीं मिली। और उस दिन मूर्ति नहीं मिलने के कारण सेठ जी ने खाना भी नहीं खाया था। क्योंकि सेठ जी गणेश जी को भोग नहीं लगा पाए थे। इसलिये सेठ जी ने भी खाना नहीं खाया और गणेश जी से प्रार्थना करते है की प्रभु लगता है आप मुझ से नाराज़ होकर, कही चले गए हो।
अब जब तक आप वापस नहीं आओगे में खाना नहीं खाऊंगा, यह दिन पूरा निकल जाता है। सेठ की भक्ति में अनन्य श्रद्धा थी इसलिए उसी रात एक चमत्कार हुआ सेठ जी को सपना आया जिसमे वे एक छोटे से चूहे के साथ खेल रहे होते है और चूहे को खाने को एक लड्डू देते है। चूहा लड्डू लेके बगीचे में जाता है और गड्डे को खोदता है और लड्डू को वही छोड़ देता है। अचानक सेठ जी की नींद खुल जाती है और सेठजी बगीचे में जाते है और वही खोदते है जहा उन्होंने सपने में देखा था। और वही उन्हें कपडे में लिपटे हुए गणेश जी की मूर्ति दिखती है। सेठ जी गणेश जी की मूर्ति की पूजा करके उनको वापिस स्थान पर रखते है। और सेठानी को सब बात बताते है। बात जानकर सेठानी जी को आश्चर्य होता है और अपनी “सच्ची श्रद्धा हो तो ईश्वर जमीं फाड़कर भी निकलते है, सच्ची श्रद्धा और विश्वास भी ईश्वर का ही एक रूप है”
गुरूवार की आरती :-
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा
छिन -छिन भोग लगाऊं ,काजू कतली ,फल मेवा।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी।
तुम जगत पिता जगदीश्वर ,तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल ,सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक ,कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।।
तन ,मन ,धन ,अर्पित कर ,जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर ,आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि ,सेवक हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता ,भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक ,सब संशत तारो।
विषय विकार मिटाओ ,संतन सुखहारी।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।
जो कोई आरती थारी ,प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो -सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृस्पति देवा ,प्रभु जय बृस्पति देवा।
Written By Gagan Karotiya