नवरात्रों में करें दुर्गा माँ  का श्री अर्गला – स्तोत्र का पाठ

नवरात्रों में करें दुर्गा माँ  का श्रीअर्गलास्तोत्र का पाठ

 

श्री ब्रह्मा जी के मुख से दुर्गा कवच का वर्णन सुनकर महर्षि मारकण्डे भाव – विभोर होकर आदिशक्ति को स्तुति करने लगे:-

हे जयंती काली – मंगला काली, भद्रकारी तुम्हें प्रणाम।

हे क्षमा, शिवाधात्री शरण दें, तेरे चारों धाम।।

हे देवी चामुंगे रानी, सुख दाती जय आदि भवानी।

सर्वब्यापिणि कालरात्रि माँ, जय जय हे दुर्गे महारानी।।

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दोहा

ली जगदम्बे माया तूने, मधु कैटभ के प्राण।।

हे ब्रह्मा के वरदायिणी माँ, कोटि – कोटि प्रणाम।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

महिषासुर को मारने – वाली। भक्तों को माँ तोड़ने वाली।।

तेरे चारणों का हूं दासा। पूरे कर दुर्गे की अभीलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

शुंभ – निशुंभ को तोड़ने – वाली। धूम्रकेतु संघारने – वाली।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

सबके बन्दित माता – रानी। सब सौभाग्य के तुम हो दो दानी।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनाश।।

अचिन्त्य रूप को धरने वाले। दुस्टों को तुम हरने – वाली।।

तेरे चरणों का हूँ दसा। रूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो है माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

पापों को तुम हरने वाली। भक्तों पे तू सँवारने वाली।।

तेरे चरणों का हु में दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

रोग से मुक्ति देने वाली। भक्तों को भक्ति देने वाली।।

तेरे चरणों का हूँ में दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

मुझे सौभाग्य माँ करो प्रदान। मांग रहा हूँ सुख का दान।।

तेरे चरणों का हूँ में दसा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रुन का कर शीघ्र विनासा।।

मुझको माँ दो शक्ति दान। बुद्धि बल दो बनु विद्वान्।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

हे दुर्गे माँ कर कल्याण। करो अधिक लक्समी प्रदान।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

पापों को तुम हरने वाली। भक्तों को तू सँवारने वाली।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

रोग से मुक्ति देने वाली। भक्तों को भक्ति देने वाली।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

मुझे सौभाग्य माँ करो प्रदान, मांग रहा हूँ सुख का दान।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

मुझको माँ दो शक्ति दान। बुद्धि – बल दो, बनु विद्वान्।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

दुष्टों का माध चूर करो तुम। हमें सुख भरपूर करो तुम।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

ब्रहम्मा जी तेरे स्मृति जाता। विष्णु शिव के भाग्य विधता।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

कृष्ण ने तेरी स्मृति गाई। शिव जी से तू पांव पुजाई।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

दे दुर्गे चरणों स्थान। भक्तों दो माँ बनूँ महान।।

तेरे चरणों का हूँ दासा। पूरी कर दुर्गे अभिलाषा।।

विजय रूप यश दो हे माता। शत्रु का कर शीघ्र विनासा।।

जो करे तूफ़ान स्तोत्र का पाठ। आंबे करती पूर्ण आस।।

सुख संपत्ति करे प्रदान। सुन्दर देती पत्नी दान।।

बाँझ नारी को सो संतान। जो यह पढ़े स्तुति महान।।

मूर्ख भी बन जाए विद्वान। सब दिन सुखी रहे संतान।।

करती अम्बे माध को चूर्ण। हुआ अगला स्तोंत्र सम्पूर्ण।।

इति

श्री अर्गला स्तोत्र समाप्त