शरद पूर्णिमा के व्रत की पूजन विधि औरकथा /कहानी 2020:-
शरद पूर्णिमा :-कार्तिक मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है। इस दिन सब लोग खीर बनाते है। और भगवान की पूजा -पाठ करके खीर और फल का भोग (प्रसाद )लगते है। उसके बाद खीर खाते है। चाँद की रोशनी में सुई पिरोव फिर खीर और फल (बानच )को छत पर रात में रखकर उसे दूसरे दिन सुबह भी खीर को खाते है। इस दिन से एक महीना तक छत पर बांस के बल्ब ( लोटयो /लाइट )बांध कर रोज जलाते है।
पूजन विधि की सामग्री :-
1 .पाटा
2 पानीसे भरा कलश /लौटा
3 रोली -मोली
4 दीपक
5 रुई और धूप
6 .गेहूँ
7.13 करवा
8 दक्षिणा
9 .एक साड़ी का बेस
10 .श्रृंगार का सामान
11 .गणेश जी की फोटो
12 .फल -फूल
13 गुड़
14 कुमकुम
15 कलावा
शरद पूर्णिमा के व्रत की विधि :- जिन लड़कियों का विवाह (शादी )होता है।वह शादी -सुदा महिलाये कार्तिक मास की पूर्णिमा से व्रत शुरू करके 13 व्रत करती है। इस दिन से ही उनका पहला व्रत होता है। सबसे पहले एक पाटा ले और उसके ऊपर एक पानी से भरा कलश रखे। एक कटोरी गेहूँ (कोई भी अनाज )से भर के रखे। और दीपक ,घी ,रुई ,रोली ,मोली ,चावल ,एक साडी का बेस ,दक्षिणा रखे। एक करवा में चावल /गेहूँ भरकर उसके ऊपर के ढक्कन में चीनी और रुपया रखकर ,पाटा के ऊपर रखे।सबसे पहले घी का दीपक जलाकर गणेश जी को टीका निकाले , कलावा बांधे और फिर गुड़ का भोग लगाये । इसके बाद कलश के कलावा बांध कर उसके स्वस्तिक बनाये और कलश के तेरा टिकी /बिंदी लगाये। इसके बाद तेरा दाना गेहूँ का लेकर कहानी सुनकर ,करवा तो अपनी सासु जी के पैर छूकर दे दो।और गेहूँ किसी ब्राह्मण को देदो। और13 गेहूँ के दाने(आखा ) पानी के कलश में डालकर रख दो। फिर रात को चाँद को देखकर उसी पानी के कलश से अरख देने के बाद खाना खा लो।
शरद पूर्णिमा के व्रत 5 प्रकार :-
1 .करवा पुन्यू
2 .चुनड़ पुन्यू
3 .चूड़ा पुन्यू
4 चाँद पुन्यू
5 .चूरमा पुन्यू
सभी पूर्णिमा के व्रत में यही व्रत कथा /कहानी सुनी जाती है।
पूर्णिमा की व्रत कथा /कहानी ;- एक साहूकार के दो बेटी थी। और दोनों बहने पूर्णिमा का व्रत करती है। बड़ी बहन तो पूर्णिमा का पूरा व्रत करती थी और छोटी बहन पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी। अधूरा व्रत करने से उसके बच्चे होते ही मर जाते थे। एक दिन उसने किसी पंडित को अपने घर बुलाकर पूछा की मेरे बच्चे होते ही मर जाते है। इसके पीछे क्या कारण है। पंडित जी ने कहाँ कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो। इस अधूरे व्रत के दोष के कारण ही तुम्हारे बच्चे होते ही मर जाते है। अब तुम फिर से पूर्णिमा का पूरा व्रत करोगी तब ही तुम्हारे बच्चे जीवित रहेंगे। छोटी बहन ने फिर ( दूबारा )से पूर्णिमा का पूरा व्रत किया। और थोड़े दिन बाद उसके लड़का हुआ। लेकिन उसकी भी मृत्यु हो गई। उसके बाद छोटी बहन ने लड़का कोपीढ़ा पर सुला दिया और ऊपर से लड़का को कपड़ो उढ़ा दिया। और अपनी बड़ी बहन को अपने घर बुलाया और वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। ज्यो ही उसकी बड़ी बहन पीढ़ा पर लगी। उसका घाघरा (लहंगा )छूते ही बच्चा जिंदा हो गया और लड़का रोने बैठ लगा। तब बड़ी बहन बोली तू मेरे के कलंक लगाव ही। अगर मै बैठ जाती तो लड़का मर जातो। छोटी बहन बोली बाई लड़का तो मरा हुआ ही था। बाई ये तो तेरा भाग्य से ही जिंदा हुआ है। बाई अपन दोनों बहना पूर्णिमा का व्रत करती थी। तो तू तो पूरा व्रत करती और मै अधूरा व्रत करती थी। इसी दोष की कारण से मेरा बच्चा होता ही मर जाते है।और बाई ये लड़का तो तेरा भाग्य से ही जीवित हुआ। इसके बाद सारे गाँव में ढिडोरा पिटवा दिया की सब कोई पूर्णिमा का पूरा व्रत करियो। हे पूर्णिमा माता। जैसे छोटी बहन के लड़का को जीवन (जिंदा )दिया। वैसे ही सबके बच्चो को जीवन देना।