हरतालिका तीज 2021 तीज के व्रत का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा / कहानी और आरती सुनने से पूरी होगी। हर मनोकामना।
हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त :-
हरियाली तीज तृतीय तिथि आरंभ: 10 अगस्त शाम 6 बजकर 5 मिनट से
तृतीय तिथि समाप्त: 11 अगस्त शाम 4 बजकर 53 मिनट तक
हरयाली तीज का व्रत 11 Aug 2021 को रखा जायेगा।
हरतालिका तीज का महत्व :-
हरियाली तीज का पावन व्रत करवा चौथ के व्रत के जैसे ही होता है। तीज के व्रत में सभी सुहागन महिलाये और कवारी लड़कियाँ भी अपने होने वाले पति की दीर्ध आयु (लम्बी उम्र ) के लिये व्रत करती है।ऐसी मान्यता है। कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा -अर्चना करने और निर्जला व्रत रखने से अखण्ड सौभाग्य की प्राप्त होता है। और घर में सुख -शांति और समृद्धि आती है। और तीज का व्रत करने वाली सभी महिलाये माता पार्वती को साड़ी ,चूड़ियाँ ,सिंदूर ,मेहँदी और सुहाग की सभी सामग्री अर्पित करती है। फिर पूजा करने के बाद अपनी सास को साड़ी और सुहाग का सामान देकर अपनी सास के पैर छूकर सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद प्राप्त करती है।
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हरतालिका तीज के व्रत की कथा :-
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म की याद दिलाने के लिए इस व्रत के महात्मय की हरतालिका तीज व्रत कथा कही थी जो इस प्रकार है गौरी पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षो तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था इतनी अवधि तुमने अन न खाकर पेड़ो के सूखे पते चबा का रवत्तीत किए माघ की विकराल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचनगिन से शरीर को तपाया।
श्रवण की मूसलाधार वर्षो में खुले आसमान के निचे बिना अन-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया तुम्हारे पिता तुमाहरी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे तब एक दिन तुम्हारी तपस्या को देखकर नारदजी तुम्हरे घर पधारे तुम्हरे पिता ने हदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा नारदजी ने खा-गिरिराज में भगवान विष्णु के भेजने पर यहाँ उपस्थित हुआ है आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते है इस संदभ्र में आपकी रे जानना चाहता हु।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गदगद हो ऊठे उनके तो जैसी सारे क्लेश ही दूर हो गए प्र्शन्न होकर वे बोले श्रीमान यदि सव्य विष्णु मेरी कन्या का वरन करना चाहते है तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है वे तो साक्षात् ब्रहा है हे महिर्ष यह तो हर पिता की इच्छा होती है की उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युत्क पति के घर की लक्ष्मी बने पिता की सार्थकता इसी में है की पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हरे पिता की स्वकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हरे ब्याह के निश्रित होने का समाचार सुनाया मगर इस विवाह सबंध की बात जब तुम्हरे कण में पड़ी तो तुम्हरे दुःख का ठिकाना न रहा तुम्हारी एक सखी ने तुम्हरे इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा तब तुमने बताया मेने सच्चे हदय से भगवान शिवशंकर का वरन किया है किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निक्षित कर दिया में विचित्र धर्म संकट में हु अब क्या करू प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।
उसने कहा-सखी प्राण त्यागने का इसमें कारन ही क्या है संकट के मोके पर धर्ये से काम लेना चाहिए नारी के जीवन की सार्थकर्ता इसी में है की पति-रूप में हदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया जीवनपर्यत उसी से निर्वाह करे सच्ची आस्था और एकनिष्ट के समक्ष तो ईश्र्वर को भी सम्पर्ण करना तुम्हे घनघोर जंगल में ले चलती हु जो साधना स्थली भी हो और झा तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी न पाए वहां तुम साधना में लीन हो जाना मुझे विश्वास है की ईश्र्वर आवश्यक ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
तुमने ऐसा ही किया तुम्हरे पिता तुम्हे घर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए वे सोचने लगे की तुम जाने कहा चली गई में विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्राण कर चूका हु यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा में तो कहीं मुँह दिखने के योग्य भी नहीं रहूँगा यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और आधार तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थी भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था उस द्दिन तुमने रेट के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया रत भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जांगी तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के परभव से मेरा आसान डोलने लगा मेरी समधी टूट गई में तुरंत तुम्हरे समक्ष जा पंहुचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।
तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा में हद्रय से आपको पति के रूप में वरन कर चुकी हु यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहाँ पधारे है तो मुझे अपनी अधरगीनी के रूप कर कैलाश पर्वत पर लौट आया प्रात होते ही तुमने पूजा की समस्त साम्रगी को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का प्राण किया उसी समय अपने मित्र-बंधू व् दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हे खोजते-खोजते वह आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उदेश्य पूछा उस समय तुमाहरी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आँखों में आँसू उमड़ आए थे।
तुमने उनके आँसू पोछते हुए विनम स्वर में कहा पिताजी मैने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया हे मेरी इस तपस्या का उदेश्य केवल यही था की में महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी आज में अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हु आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे इसलिए में अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आ अब में आपको साथ इसी शर्त पर घर जाउंगी की आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे। गिरिराज मान गये और फिर तुम्हे घर ले गये। कुछ दिनों बाद शास्त्रीय के अनुसार हम दोनों का विवाह करा दिया था। हे पार्वती। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो सच्चे दिल से व्रत किया था। उसी तपस्या के परिणाम स्वरूप मेरा तुम से विवाह हो सका है। इसलिये मै जो भी कुँवारी कन्या इस व्रत को सच्चे मन (दिल ) से करेंगी मै उन्हें मनचाहा (उनकी इच्छा नुसार फल दूँगा ) वर प्राप्त करने का फल देता हूँ। और अखंड सौभाग्य वती होने का आशर्वाद देता हूँ।
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हरतालिका तीज व्रत वाले दिन विधि विधान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है माना जाता है की इस व्रत को सबसे पहले माता पर्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए रखा था शिव जिसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी भादो मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को आने वाला ये व्रत निर्जला किया जाता है इस दिन महिलाए एक नई दुलहन की तरह सजती सवरती है और शाम के समय गोरी शंकर की पूजा करती है लेकिन इस व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है व्रत रखने वालो को माता पार्वती की इस आरती को जरूर करनी चाहिए।
पार्वती माता की आरती
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
ब्रहा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
अरिकुल पधा विनसनी जय सेवक त्राता ,
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा।
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता
हिमालय घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
शुभ्भ निशुभ्भ विदारे हेमाचल स्याता
सहज भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
सृष्टि रूप तुम्ही जननी शिव संग रंगराता
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम चित को लाता
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
श्री तेज प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी रहता सुख सम्पति पाता।
जय पार्वती माता ,जय पार्वती माता।
आरती
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
ब्रहा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
अरिकुल विनासनी जय सेवक त्राता।
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा।
देव वधु झ गावत नृत्य कर ताथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता।
हेमाचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता।
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सृष्टि रूप तुहि जननी शिव संग रंगराता।
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम चित को लाता।
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।
सदा सुखी रहता शुक सम्पति पाता।
जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता।
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