Pithori Amavasya 2021:-कब है। पिठौरी अमावस्या।जाने कथा ,शुभ मूहुर्त और पूजन विधि
कुशग्रहनी सोमवती अमावस्या 6 सितंबर एवं स्नान दान पितृकर्म एवं अमावस्या 7 सितंबर 21 मनाई जाएगी। भाद्रपद में आने (पड़ने )वाली अमावस्या का बहुत अधिक महत्व होता है।और अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। क्योकि पीपल के वृक्ष में सभी देवी -देवताओ वास होता है। अमवस्या के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने चाहिए और उसके परिक्रमा भी लगानी चाहिए क्योकि ऐसा करने से हमारे पितृ खुश होते है। और हमे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। अमावस्या के दिन गंगा स्नान या किसी भी पवित्र स्थल पर स्नान करने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन जरूर से करना चाहिए और उसे अपनी श्रदा अनुसार दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। और किसी जरूरत मंद और गरीब लोगो को भी भोजन अवश्य खिलाना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान -पुण्य भी करना चाहिए।
अमावस्या का शुभ मुहर्त :-
अमावस्या तिथि शुरू 6 sept 21 को सुबह 7 :38 मिनिट से लेकर
अमावस्या तिथि समाप्त – 7 sept 21 को सुबह 6 : 21 मिनिट तक रहेगा
अमावस्या की पूजन -विधि :-
कुशग्रहनी सोमवती अमावस्या 6 सितंबर एवं स्नान दान पितृकर्म एवं अमावस्या 7 सितंबर 21 मनाई जाएगी। भाद्रपद में आने (पड़ने )वाली अमावस्या का बहुत अधिक महत्व होता है।और अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। क्योकि पीपल के वृक्ष में सभी देवी -देवताओ वास होता है। अमवस्या के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने चाहिए और उसके परिक्रमा भी लगानी चाहिए क्योकि ऐसा करने से हमारे पितृ खुश होते है। और हमे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। अमावस्या के दिन गंगा स्नान या किसी भी पवित्र स्थल पर स्नान करने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन जरूर से करना चाहिए और उसे अपनी श्रदा अनुसार दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। और किसी जरूरत मंद और गरीब लोगो को भी भोजन अवश्य खिलाना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान -पुण्य भी करना चाहिए। यह अमावस्या इस दिन धार्मिक कार्यो लिए कुशा यानी घास इकठी की जाती है। ऐसा माना जाता है। धार्मिक कार्यो ,श्रद्वा कर्म और भक्ति भावना आदि में उपयोग की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य की प्राप्ति होती है। भाद्रपद अमावस्या को पिठौरा अमावस्या भी कहाँ जाता है। इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित महिलाये (स्त्रियाँ )द्वारा संतान प्राप्ति और अपनी संतान की दीर्ध आयु और कुशल मंगल के लिए व्रत रखती है।और दुर्गा माता की पूजा -अर्चना की जाती है। इस दिन सभी विवाहित महिलाये और बच्चो की माताये ही व्रत रख सकती है। यह व्रत कंवारी लड़की (कन्याएँ ) नहीं कर सकती है। और पूजा करने के लिए पकवान बनाये जाते है। जैसे गुजिया ,शक्कर पारे ,गुज के पारे और मठरी बनाई जाती है। और उसके बाद देवी -देवताओ ( भगवान )के भोग लगाया जाता है। उसके बाद आटे के देवी -देवताओ को बनाया जाता है। और फिर उनकी आरती की जाती है। अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ की नीचे दीपक जलाना चाहिए। और उसके बाद पितरो को याद करना चाहिए। और फिर पीपल के सात परिक्रमा लगानी चाहिए। अमावस्या तिथि शनिदेव का दिन है। और अमावस्या शनिदेव को बहुत प्रिय है। इसलिए उस दिन शनिदेव की पूजा -अर्चना अवश्य करनी चाहिए। और अमावस्या के दिन कालसर्फ़ दोष का निवारण के लिए भी पूजा की जाती है
सोमवती अमावस्या की कहानी / कथा : –
प्राचीन समय बात है। एक गाँव में गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। उस परिवार में पति -पत्नी के आलावा ब्राह्मण के एक पुत्री भी थी।ब्राह्मण की पुत्री धीरे -धीरे बड़ी होने लगी। और उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्तियोचित गुणों का विकास हो रहा था। और वह कन्या (लड़की ) सुन्दर ,सुशील ,संस्कारी और बहुत गुणवान थी। लेकिन उस ब्राह्मण की लड़की गरीब होने के कारण उसका विवाह (शादी होने में बाधा आ रही थी ) नहीं हो रहा था। अचानक एक दिन उस ब्राह्मण के घर पर एक साधु महाराज पधारे। और वह साधु महाराज उस कन्या के सेवा भाव से बहुत अधिक खुश हुये। और फिर उन्होंने उस ब्राह्मण की बेटी को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुये। साधु महाराज ने कहाँ की इस कन्या के हाथ में विवाह (शादी ) योग्य रखा नहीं है। तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा। कि कन्या ऐसा क्या उपाय करे। की उसके हाथ में विवाह के योग बन जाये। साधु ने सोच -विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि के ध्यान करने बताया। की यहाँ से कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक स्त्री अपने बेटे और बहुओ के रहती है। जो बहुत ही श्रदा भक्ति ,आचार -विचार ,और संस्कार सम्पन तथा पति वर्ता (परायण ) है। अगर यह कन्या उसकी सेवा करे। और वह स्त्री (सोना धोबन )इस कन्या की शादी में अपनी मांग का सिंदूर लगा दे। उसके बाद इस कन्या कीशादी हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। और उस साधु ने ब्राह्मण दम्पति को यह भी बताया की वह स्त्री (सोना धोबन) कहीं भी आती -जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से सोना धोबिन की सेवा करने की बात कही।
अगले दिन कन्या सुबह जल्दी उठकर सोना धोबन के घर पहुँचकर। घर का सारा काम झाड़ू -पोछा -और बाकी सभी काम भी पूरा करके अपने घर वापस चली जाती है। एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है। कि आजकल घर का सारा काम भी कर लेती हो और तुम लोग आपस में लड़ती भी नहीं हो ,तो तुम मे से कौन सी बहू घर का सारा काम करती हो। तो सोना धोबन की बहू ने कहाँ की माजी घर का काम तो हमे ही करना है। वो फिर लड़कर करे या राजी से तो फिर लड़ने में क्या फायदा है। एक दिन सोना धोबन छुपकर बैठ जाती है। और देखना चाहती है। की घर का सारा काम कौन करता है। तब सोना धोबन ने देखा की एक कन्या सुबह जल्दी आकर घर का सारा काम करके चली जाने लगी। तब सोना धोबन ने उससे पूछा की तुम कौन हो और तुम्हे ऐसी क्या दरकार (जरूरत ) है। जो तुम मेरे घर में साफ -सफाई और अन्य काम करती हो। तब कन्या ने कहाँ की मुझे दरकार है। तबी तो इतना काम करती हूँ। उसके बाद उस कन्या ने सोना धोबन को उस साधु के द्वारा कही सारी बात बताई। क्योकि सोना धोबन पति परायण थी। और उसमे बहुत तेज था वह कन्या के साथ जाने तुरंत तैयार हो गई.लेकिन सोना धोबन के पति थोड़े अस्वस्थ थे। इसलिए उसने अपनी बहू से ,अपने वापस लौटकर आने तक घर पर ही रहने को कहाँ ।
सोना धोबन ने जैसे ही अपनी मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया ,उधर उसका (सोना धोबन ) का पति मर गया। सोना धोबन को इस बात का पता चल गया। वह घर से निर्जला ही चली गई। यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे ही भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा लगाकर (देकर ) ही जल ग्रहण करेगी। क्योकि उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर से मिले पुये -पकवान की जगह उसने ईट के टुकड़ो से 108 भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा लगाकर ही उसके जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके (सोना धोबन ) पति के मृत शरीर में फिर से जान आ गई। सोना धोबन का पति वापस जीवित हो गया। इसलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो भी सुहागिन महिलाये हर अमावस्या के दिन भंवरी देती है। उसके पति की दीर्घ आयु और सुख -सौभाग्य में वृदि होती है। और घर में सुख -शांति और समृद्धि आती है। क्योकि पीपल के पेड़ में सभी देवी -देवताओ का वास होता है। अगर कोई भी व्यक्ति ऐसा हर अमावस्या को ऐसा नहीं कर सकता है। तो वह सोमवार को सूर्य उदय के साथ आने (पड़ने) वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते है। तो वह सोमवती अमावस्या के दिन 108 फल ,सब्जी या कोई भी खाने चीजो की भंवरी देकर सोना धोबन और गौरी -गणेश की पूजा -अर्चना करते है। उसे अखंड सौभाग्य और सुख -समृद्धि की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान ,पान ,हल्दी। सिंदूर और सुपारी की भंवरी दी जाती है। उसके बाद ही सोमवती अमावस्या को अपने श्रदा(क्षमता ) के अनुसार ही फल ,मिठाई ,सुहाग, सामग्री, या कोई भी खाने की सामग्री आदि की भंवरी दे सकते हो।