दुर्गा  माँ  का श्री किलक स्तोत्र

 

दुर्गा  माँ  का श्री किलक स्तोत्र

 

शेरावाली के चरणों में, करते हुए प्रणाम।।

श्री मार्कण्डेय जी ने किये, किलक स्तोत्र बखान।।

अति शुद्ध ज्ञाणमय, हैं देवी के रूप।

महिमा अपार है इनकी,पा न सके हैं भूप।।

फिर करते हैं किशूलधारी, शिव जी को प्रणाम।

भवसागर ताड़न दिए, हैं, किलक मंत्र का ज्ञान।।

 

किलक स्तोत्र को शिव जी ने, खुद ही किए हैं कील।

जो नर इसका इसका पाठ करे,हो धन – जान वो गनशील।।

चतुर्दशी – अष्टमी को, जो नर करता पाठ।

मनोकामना पूरी हो, खुल जाये भाग्य कपाट।।

पढ़ मानव किलर का ज्ञान। निश्चित पाओगे कल्याण।।

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जो कीलक का स्तुति गए। सभी काम में प्रशिद सिद्धि गए।।

हर मुश्किल का एक उपाए। किलक मंत्र से तू सिद्धि पाए।।

लोक सिद्धि है कठिन महान। किलक से तू सिद्धि जान।।

शिव जी गुप्त किये हैं पाठ। मानव बड़े भाग्य से पात।।

फलदायक स्तोत्र भवानी। किलक मंत्र पढ़े नर ज्ञानी।।

रोज पाठ करे प्रेम सहित जो। जग में विचरे कष्ट रहित वो।।

मानव मनवांछित फल पाए। अंत समय में स्वर्ग को जाए।।

पूजे जो दुर्गे को नारी। पुत्रवती हो सदा सुखारी।।

जो देवी के दर पे जाए। खाली झोली भर ले आए।।

धन दौलत सुख सम्पति पावे। जो दुर्गे जी पाठ गावे।।

बुद्धि – बल से रहे अरोगा। परिजन से न होत बियोगा।।

नवदुरदे अम्बे जगतारिणी। भक्तों के हैं कष्ट निवारिणी।।

पड़े पाठ वो सिद्धि पाता। पल में भवसागर तर जाता।।

दुश्मन का हो जाता क्षय। नहीं सताता उनको भय।।

नित्य पाठ को जो गता है। मारकर मोक्ष वही पाता है।।

कष्ट होत न शत्रु बलवान। सुख संपत्ति करे प्रदान।।

बिनु समझे जो करता पाठ। निश्चय मिलता उसे उचाट।।

पूजन करो विधि को जान? पाठ करो न बिनु स्नान।।

अशुद्ध दशा में पाठ न पढियो। अपने पर खुद जुल्म न करियो।।

प्रेम से विनती करो मात की। शुद्ध हो जाए महापात की।.

दारूण कालरात्रि हैं अम्बा। महामहो रात्रि जगदम्बा।।

आप ही हैं ईशवर महान। विधा बुद्धि हो तुम ज्ञान।

लज्जा – पुष्टि शान्ति आप। तृष्टि शान्ति हो जगमात।।

शेरांवाली आदि भवानी।  परमेश्वरि देवो ने मानी।।

तुम हो जग के पालन कर्ता। सब जीवों के हो संहर्ता।।

महादेव विष्णु भगवन। दी जो सबको जीवन दान।।

हे दुर्गे तुम पूज्य महान। कैसे करूँ तेरे गणगान।।

तेरी कृपा से हॉट सवेरा। हुआ किलक स्तोत्र ये पूरा।।

 

ध्यान

वन्दों गिरजा गणपति, जय हो भोलेनाथ।

दया करोहे जगदम्बे, मैं बालक हूँ अनाथ।।

कोटि अपराध की क्षमा करें, जान हमें अन्जान।।

चरणों का रज चाहता, ये बालक तूफ़ान।।

दास को शक्ति दें अम्बे, उपजे शुद्ध विचार।

शरणागत को शरण दें, कर दे बेड़ा पार।।