Amalaki Ekadashi 202 ये है सही डेट !

Amalaki Ekadashi 202 ये है सही डेट !

 

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। एकादशी को सभी व्रतों में सर्वोत्तम माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे आंवला एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा कर लोग उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस साल आमलकी एकादशी व्रत 25 मार्च (गुरुवार) को रखा जाएगा।

आंवला एकादशी की महात्मय कथा

आचार्य मनजीत धर्मध्वज ने बताया कि विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के मुख से चंद्रमा के समान प्रकाशित बिंदू प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा। उसी बिंदू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड़ की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु के मुख से प्रकट होने वाले आंवले के वृक्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इस फल के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि इस फल के स्मरणमात्र से रोग एवं ताप का नाश होता है तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यह फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है। इस फल को खाने से तीन गुना शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

Amalaki Ekadashi 2021: Know Amalaki Ekadashi Vrat Katha, Puja Vidhi,  Muhurat, Significance And All Related Things - Amalaki Ekadashi 2021 Katha  And Vidhi: आमलकी एकादशी व्रत कथा, पूजा विधि, मुहूर्त और संबंधित

आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि का प्रारंभ – 24.03. 2021 सुबह 10 बजकर 23 मिनट से।

एकादशी तिथि समाप्त – 25.03. 2021  सुबह 09 बजकर 47 मिनट तक।

एकादशी व्रत पारण का समय – 26.03.2021 सुबह 06:18 बजे से 08:21 बजे तक।

आमलकी एकादशी पूजा विधि

1-भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।

2- पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें।

3- कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।

4- अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें।

5- रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।

6- द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्तिसहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।