चैत्र नवरात्रि 2021 :- 13 अप्रैल को चैत्र नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा का पाठ
दुर्गा सप्तशती माणिक्य जी पुराण के 98 अध्याय से प्रारंभ होती है तथा 90 अध्याय में समाप्त होती है कुट्टू की सिनेमा निक्की जी मुनि से 57 जंगम जगत की उत्पत्ति तथा मनु के विषय में पूछा है माने केजी साधनों का वर्णन कर चुके हैं अब आठवीं मनु का वर्णन करते हुए माननीय जी बोले है कोडूको की सूर्य के पुत्र जो आठवीं मनु कहे जाते हैं उनकी उत्पत्ति की कथा विस्तार पूर्वक कहता हूं पूर्वकाल की बात है
स्वरुचि मन्वंतर में सूरत नाम के थे राजा प्रजा के सच्चे पालक थे वह छत्रपति थे महाराज कोला नगरी के नगर से हुआ सूरत का संग्राम युद्ध में हारे सूरज जी जीना हुआ हरा प्रबल शत्रु से हारकर भवन में किए निवास दुश्मन बन गए मंत्री गण जिन पर था विश्वास उदास हुए राजा सूरत चल पड़े बनवास पहुंच गए 1 राजा जी मेगा मुनि आश्रम पास जहां निशा व्याप्ति सौरव बरसाए शाम वहीं पर मुनिवर में गाजी हुए थे विराजमान उत्तम मन में आकर ठहरा कर के विचार मुनिवर में गाने किए राजन का सत्कार मेगा मुनि का आश्रम था एक कल्याण निवास सूरत रहने लगा वहां बनकर मुनिरका दास ठहरे राजा आश्रम में उनका ठेला पर जाके चिंतामन मेथी का हृदय में गहरा मानव योनि जन्म लिए थे वह भी थे संस्कारी मोह माया मन को सताए थी उनको लाचारी सोच रहे थे सजे पर जाके सी संकट भारी राज्य का शासक विनीत हुआ बने मंत्री दुराचारी अपने सब जनों ने मेरा रतन खजाना छीन लिया प्रजा की सेवा से वंचित हूं कितना हमको दिन किया सता रहा था राजा को मन में प्रजा का ध्यान चिंतित आश्रम से निकले सावन में बैठ बैठ के मन में सोच रहे थे कि साधु का पाला क्या खाता होगा गज मेरा सूरत नाम मतवाला धन को मीठा दूर करते होंगे प्रयोग से संगरिया खजाना नहीं लुटाने योग हो गए दुश्मन बस में मेरे प्यारे लोग कैसे प्राप्त करेंगे वह फिर से अच्छे भोग उठा रहा नृत्य मन में एक से एक सवाल नाम समाधि वैसे विचारा पहुंचाते काल दुखी उन्हें भी देखें राजा ने दिव्या बोले मेरा जीवन में क्यों भटक रहे बेकार कहां के वासी हो रहा है ही क्या है तेरा नाम क्यों आंसू से नैन भरा क्या जंगल में काम
समाधि वैसे बोला
नाम समाधि वैसे मेरा बहुत बड़ा परिवार धन से है भंडार भरा चलता था व्यापार दुश्मन हो गए पुत्रवधू हमें किया बेहाल लिया खजाना छीन मेरा घर से दिया निकाल मेरे ही अपनों ने मुझसे किया नीचे यह काम मन में आए धीर नहीं बिल्कुल सुबह शाम भला बुरा क्या होता उन पर मैं नहीं सकता जान दुखी ना रहे सजन मेरे बातों से परेशान राजा बोला राजा बोला
पिक्चर धन दौलत के लोग में जिसने भी फटकार जिसने की अपमान तेरा बकालिया ललकार ऐसे सब जनों से सज्जन क्यों करते हो प्यार तेरे स्कार की जिसने वह है झूठे नातेदार
समाधि बोला
ऐसी ही बातें राजन मन में आती कई बार फिर भी दिल से न जाता यह झूठे नातेदार धन के लोभी पुत्र सभी हैं वो व्यवहार जान समझ कर भी नहीं तुझे मेरा मन का प्यार मेरे रिश्तेदारों ने किया है नीचे काम फिर भी ना उनके बिना आए हमें आराम सूरत ने कहा समाधि यह मेरा भी हाल यही होता कि ना जिसने राज्य मेरा उस पर भी यह दिल रोता ऋषि के पास गए दो अपनी व्यथा सुना डाला समझावे है मुनिराज हमें कौन है यह मोह माया पता नहीं हम दोनों को क्यों इतनी मोहब्बत आया उस पर गया है क्यों आती जिसने हमें ठुकराया है बार-बार मन जाता है फिर भी उनके पास चुल्लू भर पानी का भी नहीं है उनसे आज इसका कारण कौन है कहिए मुन्नी यह राय निर्मल ज्ञान का दान दो जिसमें भ्रम मिट जाएगा
ऋषि बोले
वक्त तो इन माया का है है जरा ध्यान से सुनो यह पावन ज्ञान सुना रहा हूं आज परम तत्व से युक्त यह माया हरजी वह में समाई है कण कण पर है रांची का जिसने जकबर पाई है योग निंद्रा है यह अंबे जिनका ममता नाम दुख सुख में भरमा देता है इनका ही है काम विष्णु की शक्ति है यह भक्तों की खातिर आई महामाया नाम इन्हीं का भगवती रूप बनाए शक्ति अमन वर्मा थी ममता में हमें फंसा थी जब को यही आती है संसार को यही रुलाती है यही विद्या कहलाती है अभी बन जाती है संसार को हटाने वाली मां दुर्गा काली कहलाती है कृपा से जिद करती जिनके आती है बिगड़ी बन जाती उनका जिन पर दया यह करती है जगदंबे जगत जननी की अजब है विधि विधान सब कुछ यहीं कराती है न समझे नादान ऐसी हम सब का हाल पड़े हैं माया के जाल लालच में रहते दिन रात भूल गए हैं जिनकी मां
राजा सूरत बोले
कैसी है यह भगवती कैसे इनका रूप मुड़नल को ज्ञान दे फिर क्यों के भूत कैसे यह उत्पन्न हुई क्या करती है काम जो इनको है पूछते क्या मिलता अंजाम
ऋषि बोले
यही माया भगवती रचा है सकल जहान कई बार उत्पन्न हुई सुन ले अमर बलवान जन्म है लेती करके हो भक्तों का उपकार जब भी फावड़ा धरती पर लंबे अवतार ब्रह्मा विष्णु शिव जी भी जगदंबे के दास चलो सुनाता हूं राजन एक बार की बात सृष्टि जल में हो गई तब विष्णु भगवान योग निंद्रा मैसेज पढ़ कर रहे थे विश्राम निद्रा में सोए विष्णु जी पूछ रहे थे कहां उन कानों के मेल से उज्जैन 2 दानों भगवान विष्णु नाभि कमल वर्मा कर रहे थे ध्यान ध्यान में देखे वर्मा जी आया कोई तूफान सृष्टिकर्ता भयभीत हुए लिए नेट को खोल दो असूल को देख प्रभु हो गए ढोलम ढोल इतने में मधु के बीच बर्मा को फटकार वध करूंगा मैं तेरा हो जाओ तैयार हरि को सोया जानकर बर्मा करे पुकार करे दो दानव से रक्षा आज मेरे करतार तुम भी नहीं अंतर्यामी नहीं बचेंगे प्राण इंदिरा देवी कृपा करें जगह विष्णु भगवान विनय सुनो हे निंद्रा देवी हरी अगर जागेंगे आज दो दानव के हाथों वर्मा ही मिट जाएंगे रक्षा करें जगदीश्वरी संकट में है प्राण तुम ही हो स्वास्थ्य हो तुम ही जग विष्णु भगवान कालरात्रि महा रात्रि नवरात्रि अंबे हो लज्जा पुष्टि हो जगदंबे हो अरे तुम्हें एक मां सिद्धि योग निद्रा शक्ति माता तुम्हीं विद्या बुद्धि हो आज हमारी रक्षा कर सुनिए विनय भवानी मां मधु के टॉप के अपने मन में ठानी मां छोड़ी ने विष्णु को हर हरि गए फिर जाग देखा दोनों दानव ने उगल रहे थे आग हरे ने हर स्थिति पर अपने नींद उड़ाए क्रोधित हो मधु कैटभ को फ्री आवाज लगाए वर्मा जी को ने धमका हो यह है मेरे लड़ना ही हो तो इधर आओ लड़ो मेरे संग क्षण भर में ही छूट गया महापौर संग ना लड़े 5000 साल तक दोनों वीर बलवान तब देवी मां माया ने गानों को भरमाया मधु के मन में दिए देवी अभिमान जगाया बोला घमंड में दानव ने उन्हें विष्णु भगवान तेरे युद्ध कला पर खुश हूं भगवान मांग कोई वरदान बोले हरि यह बलशाली दे इतना वरदान मेरे हाथों मारो जो निकले मेरा प्राण डूबी धरती जहां जल से कोई मरा नहीं था वहीं पर मारे हम दोनों को हे विष्णु भगवान दोनों का मस्तक जांग रखें हरि लिए सिर काट योग निंद्रा सतवन से कटा वर्मा का अपाचे के कण-कण में राजन माया जहां बिराजे चंदा सूरज जले इशारे इंद्र ने बदली साजे जो मानव माया को दिल में सदा दिखावे विष्णु का भी चक्र सुदर्शन तड़पावे
हे माता रानी नवरात्र के पहले दिन का पाठ संपूर्ण हुआ है इसी तरह आप सब का व्रत करने वाले की मनोकामना पूर्ण करना और सब की बाधाएं दूर करना जीवन में खुशहाली लेकर आना सभी की मनोकामना पूर्ण करना मां सबके घर में जोड़ी बनाए रखना मां सबके बच्चों को सुख शांति देना मां सबको प्रोग्रेस देना