Dhanteras-2020
धनतेरस 2020
दीपावली पांच दिवसीय त्यौहार है जो धनतेरस से शुरू होता है। धनतेरस कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की त्रोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस को धनन्वत्री जयंती व धन त्रोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस इस वर्ष 13 नवंबर, 2020 को मनाया जाएगा।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंत्री देव समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि देव जब समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसी वजह से धनतेरस के दिन से ही दीपावली की शुरुआत हुई थी।
वही यह भी मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसीलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। और यह पर्व दिवाली से ठीक दो दिन पहले होता है।
धनतेरस मनाने का तरीका:-
धनतेरस के दिन धन्वन्तरी के साथ – साथ माता लक्ष्मी और धन देवता कुबेर की भी आरती उतारतें है। इस यमलोक के राजा यामराज को भी दीपदान किया जाता है। इस दिन यमराज की पूजा इसलिए करतें हैं क्यूंकि की इस दिन यमराज की पूजा करने से घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यमदेव की पूजा करने के बाद पूरी रात घर के मुख्या द्वार पर दक्षिण दिशा की और दीपक जलना चाहिए। उस दीपक में कुछ पैसा भी डाला जाता है।
धनतेरस मानाने के नियम:-
धनतेरस के दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में यमराज को दीपदान भी किया जाता है। अगर अगर दोनों दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल का स्पर्श करती है अथवा नहीं करती है तो दोनों स्तिथि में दीपदान दूसरे दिन किया जाता है।
धनतेरस पूजा की विधि:-
धनतेरस की पूजा हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। सबसे पहले 13 दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए। देव कुबेर का ध्यान करते हुए उन्हें फूल चढ़ाएं। इसके बाद धुप, डीप, नैवेद्द से पूजा करें। इस दिन स्थिर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्वा है।
- धनतेरस पर धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा का विधान है। षोडशोपचार यानी विधिवत सोलह क्रियाओं से पूजा संपन्न करना। इसमें आसान, पद्द, अघर्य, आचमन (सुगन्धित पाय जल), स्नान, वस्त्र, आभूषण,गंध(केसर – चन्दन), पुष्प, धुप, डीप, नैवेद्द, आचमन (शुद्ध जल), दक्षिणायुक्त तांबूल, आरती, परिक्रमा आदि है।
- धनतेरस पर पीपल और चंडी के बर्तन खरीदने की परम्परा है। मान्यता है कि बर्तन खरीदने से धन समृद्धि होती है। इसी आधार पर इसे धन त्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं।
- इस दिन शाम के समय घर के मुख्या द्वार और आँगन में दिए जलने चाहिए। क्यूंकि धनतेरस से ही दीपावली के त्यौहार की शुरुआत होता है।
- धनतेरस के दिन शाम के समय यम देव के निमिर्त दीपदान किया जाता है। मान्यता है की ऐसे करने से मृत्यु के देवता यमराज के भय से मुक्ति मिलती है।
धनतेरस पर किस चीज़ की खरीदारी मानी जाती है शुभ:-
धनतेरस के दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन वाहन औरगहनों की खरीदी करना शुभ मन जाता है। धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की चांदी प्रतिमा को घर, दुकान, कार्यालय, और अन्य व्यापारिक स्थानों पर लाने से सफलता और कामयाबी मिलती हैं। धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तौर से बर्तन की खरीदी की जाती है। इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। इस दिन तो भारत में सोनार भी बहुत ज़्यादा व्यस्त होतें है।
धनतेरस मुहूर्त वर्ष 2020:-
धनतेरस मुहूर्त :17:42:29 से 18:01:28 तक।
प्रदोष काल :17:36:08 से 20:11:40 तक।
वृषभ काल :17:42:29 से 19:40:52 तक।
धनतेरस की कथा:-
कहा जाता है किसी राज्य में एक राजा हुआ करता था, जिसे के वर्षो के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा था कि, जिस दिन उसका विवाह होगा उसके चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दुःख हुआ। इससे बचने के लिए राजा ने राजकुमार को ऐसी जगह भेज दिया, जहाँ आस – पास कोई स्त्री न रहती हो। एक दिन वहां से एक राजकुमारी जा रही थी तब राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा और प्यार में मोहित हो कर दोनों ने एक दूसरे से विवाह कर लिया।
ज्योतिष की भविष्य वाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने के लिए पहुंचे। यमदूत को देखकर राजकुमारी विलाप करने लगी। यह देख कर यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की राजकुमार के प्राण बचाने का कोई उपाए बताइये। इस पर यमराज ने कहा की जो भी व्यक्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मेरा पूजन कर दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलाएगा, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाने की परंपरा है।