Navratro me kare Shree Durga Kavach sabhi manokamna hogi puri

Navratro me kare Shree Durga Kavach sabhi

manokamna hogi puri

Shree Durga Kavach

श्री दुर्गा कवच

 

नवरात्र में करें माँ दुर्गा का पाठ :

हर घर में होंगी खुशियाँ, होगी धन की प्राप्ति, सुख-समृद्धि से होंगे सब कुशल कार्य, नये घर का हो हवन या करना चाह रहे हो कोई शांति पाठ तो इस प्रकार आप दुर्गा पाठ पढ़कर मन की शांति और रोग निवारक समता, कोई कार्य जो रुका हुआ हो, लेना/बेचना, चाहते हो घर, धन में वृद्धि, तथा सब कार्य होंगे कुशल-मंगल माँ दुर्गा करेंगी सबका भला ! दुर्गा माँ को श्री वैष्णो देवी का ही मना जाता है, प्रतिदिन माँ दुर्गा पाठ पढ़े, इससे आपको बहुत लाभ मिलेगा।

 

हे संसार के रचने वाले, सृष्टिकर्ता सूजान।

मानव तारण हेतु प्रभु, बतलायें कोई विधान।।

हर जीवों की रक्षा हो, कोई ऐसा कहें उपाय।

जिनके नाम को रटने से, परम पद को पाय।।

महाशक्ति वो कौन है, जो चला रही संसार।

जिनका ब्रम्हा, विष्णु, शंकर पर भी है अधिकार।।

तीनो लोक में गुप्त प्रभु, जो है उत्तम ज्ञान।

वो गुप्त रहस्य को बतलावें, दयाकर कृपा निधान।।

ब्रम्हा जी कहने लगे, सुनिये हे मुनिराज।

अति गुप्त से गुप्त रहस्य, सुना रहा हूँ आज।।

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दुर्गा कवच का पाठ करें, जो मानव चित लाये।

देवी-देवता असुर वो मुनिगण, सरे जीव तर जाये।।

देवी कवच के अंदर ही है, सारा ब्रम्हाण्ड।

इनके अंदर चंद्र की छटा उदित होता है भान।।

पुण्यदायक कवच यह, सुख को करे प्रदान।

जो नित ही ये पाठ करे, हो जाय विद्वान।।

नव दुर्गा का नाम जपे, हो धन-जन से भरपूर।

सुने महर्षि गुप्त रहस्य, इन पर ही हमें गरुर।।

नव दुर्गा का वचन ये, जो पढ़े चित लाय।

उस मानव पे कही कभी, कष्ट कोई न आय।।

आदिशक्ति जगदम्बे की, नौं शक्ति है रूप।

सबका नाम सुनता हूँ, सुनिये मुनिवर भूप।

प्रथम नाम है शैलपुत्री, दूसरी ब्रम्ह्चारिणी।

तीसरी है चंद्रघण्टा, जगत की है तारिणी।।

चौथी है कुष्मांडा माँ,स्कन्धमात पांचवी।

कात्यायनी छटी रूप, कालरात्रि सातवीं।।

आठवीं है महागौरी, नवी सिद्धिदात्री माँ।

इन्हीं शक्तियों पर टिका, पाताल धरती आसमां।

धरती का संकट मिटाने, बदले कितने रूप हैं।।

वन-में, रण में, रोग में, जो करे कवच का पाठ।

विजय पताका लहराये, खुल जाये स्वर्ग कपाट।।

चामुण्डा माँ चढ़ी प्रेत, वाराही भैंसें सवार हैं।

ऐंद्री गज पे गरुड़ वैष्णवी, करती बेड़ा पार हैं।

माहेश्वरी बैल पर बैठी, शारदे हंस सवारी है।

कई रूप में प्रकट हुई, ये अंबे शेरावाली है।।

नाना प्रकार के रत्नों से, स्वरुप है शोभायमान।

भक्तो की सभी गुणकारी है, सभी दया के खान।।

अब इन विनय वंदान से, जो दुर्गे का ध्यान करे।

शेरावाली सिंह बैठके, भक्तो का कल्याण करे।।

हे शेरावाली संकटों से, अब मेरी रक्षा करो।

विहल हूँ माँ, में विकल हूँ माँ, रक्षा करो रक्षा करो।।

ऐन्द्री अम्बे पूर्व से, इंद्र शक्ति से रक्षा करो।

माँ शेरावाली संकटो से, अब मेरी रक्षा करो।।

अग्निकोण से अग्नि शक्ति, अग्नि से रक्षा करो।

दक्षिण दिशा से वाराही, दुष्टों से माँ रक्षा करो।।

नै ऋ०य कोण से काली माँ, खडग से रक्षा करो।

हे शेरावाली संकटो से, अब मेंरी रक्षा करो।।

पश्चिम दिशा से वारुणी, वरुण शक्ति से रक्षा करो।

वायब्य कोण से मृग सवारी वाली माँ रक्षा करो।।

कौमारी उत्तर दिशा से, मेरी माँ रक्षा करो।।

हे शेरावाली संकटों से, अब मेरी रक्षा करो।

इंसान कोण से गौरी माँ, त्रि शूल ले रक्षा करो।

चंडिका माँ नीचे, ऊपर वैष्णवी माँ रक्षा करो।।

हे चामुण्डे हर दिशा से, अब मेरी रक्षा करो।

विहव्ल हूँ माँ, में विकल हूँ माँ, रक्षा करो-रक्षा करो।।

अग्र भाग से जया, पीछे विजया माँ मेरी रक्षा करो।

वाम मैया अर्जिता, दायें अपराजिता रक्षा करो।

उधोतिनी माँ शिखा की, यशस्विनी भौहों की रक्षा करो।

यमघण्टा देवी नाशों  की, सुगंधा श्वांसो की रक्षा करो।।

शंखिनी माँ नेत्रों की, द्वारवासिनी कर्ण की रक्षा करो।

हे शेरावाली संकटो से, अब मेरी रक्षा करो।।

कालिका माँ कपोल की, शंकरी कर्णमूल की रक्षा करो।

होंठो की मैया चर्चिका, जिव्हा की सरस्वती रक्षा करो।।

सर्वमंगला वाणी की, घुटनो की चित्रघंटा रक्षा करो।

रीढ़ की धर्नुधरी, कामाक्षी ठोड़ी की रक्षा करो।।

बैठें कंधो पे खडक धारिणी, भुजा की शूल धारिणी रक्षा करो।

हाथों की दण्डिनी, अंगुलियों की अम्बिका रक्षा करो।।

नखों की शुलेश्वरी, पेट की कुलेश्वरी रक्षाव करो।

नीलग्रीवा कंठ की, नलिका नलकूबरी रक्षा करो।

देवी ललिता ह्रदय की, गुदा की महिषवाहिनी रक्षा करो।।

कटि प्रदेश की विंध्यवासिनी, नरसिंही तकनों की रक्षा करो।

पांवो की तेजसी भवानी, वृद्धि विणा-पाणी रक्षा करो।।

पद्यकोश की पधरानी, कफ की चूड़ामणि रक्षा करो।

नख दांढ़ो की कालरूपिणी, त्वचा वागीश्वरी रक्षा करो।।

छाया की छत्रेश्वरी, प्राणों की शोभना रक्षा करो।

हे शेरावाली धर्म-कर्म, हर जीव की रक्षा करो।।

 

ब्रम्हा जी बोले, हे मार्कण्डेय जी :-

जो इन कवच वंदना का, करे ह्रदय से पाठ

रक्षक उनका शेरावाली, हो जाती है आप।।

जो मानव यह चाहता, जग में अपना कल्याण।

पहले कवच का पाठ करे, फिर करे प्रस्थान।।

माँ के कवच का पाठ करे तो, सभी कामना मिलती है।

ऋद्धि-सिद्धि का मिले खजाना, सुखी बगिया खिलती है।।

कवच सुरक्षित मानव, संग्राम में विजयी होता है।

अनिष्ट नहीं होता उसका, जो दुर्गे चरण में सोता है।।

कलियुग में जो नित्य करेगा, देवी कवच का पाठ।

धन-जन से पूर्ण रहेगा वो, मिट जाये शोक सन्ताप।।

पापी मानव को तरने का, एक मात्र विधान।

नित्य कवच का पाठ करें, मिल जाये मुक्ति धाम।।

यंत्र-मंत्र वो तंत्र कभी, कर न सके कोई अनिष्ट।

पाठ करत ही दुश्मन भी, बन जाते है मित्र।।

जो माता का ध्यान करें, ,माता देती पत्र।।

सड़क भिखारी के भी सिर पे, रख देती है छत्र।।

करे कवच का पाठ नित्य, जो पाना चाहे मान।

धन-जन से जो पूर्ण रहे, बन जावे विद्वान।।

परम पद को पता है, मिट जाता है मिट जाता है हर रोग।

दुनियाँ में रोशन होकर, पाता है सुख भोग।।

नतमस्तक तूफान शरण में,बना ले दुर्गे-दास।

कोई नहीं तुम बिनु हे अम्बे,एक तुम्ही पे आस।