Sheetla Ashtami 2021 ;- कब है। शीतला अष्टमी ? यहाँ देखे पूजा करने का शुभ मुहूर्त ,व्रत कथा और इसकी पूजन विधि
Sheetla Ashtami (बासोडा ) 2021 :- शीतला अष्टमी(Sheetla Ashtami ) होली के आठ दिन बाद आने वाली चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।लेकिन कुछ स्थानों पर शीतला माता की पूजा होली के बाद आने वाले (पड़ने ) वाले पहले सोमवार या वीरवार के दिन ही पूजा करते है। शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व होता है। और इस माता की मान्यता भी बहुत है। शीतला माता की पूजा के लिए इससे एक दिन पहले ही रात में पकवान बनाकर रखे जाते है। अगले दिन बासी खाना (बासोड़ा )से ही शीतला माता की पूजा की जाती है। सभी महिलाये इस दिन अपने बच्चो की दीर्ध आयु औरअपने बच्चो को स्वस्थ रखने के लिए माता की पूजा करती है। और घर की और अड़ोस -पड़ौस की सभी औरतें एक साथ पूजा करती है। और शीतला माता के गीत भी गाती है। और माता के चढ़ाया हुआ प्रसाद बच्चो को खिलाती ताकि माता का आशीर्वाद बच्चो पर सदा ही बना रहे और और बच्चे स्वस्थ रहे। कुछ जगह पर(राजस्थान में )तो नवविवाहित महिलाये इस दिन कुम्हार के घर से चिकनी मिट्टी लाकर गणगौर बनती है। और फिर धूम -धाम से गणगौर के गीत गाती है। और शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नियमित काम करने के बाद स्नान करने के बाद शीतला माता को सबसे पहले तो ठंडे पानी से नहलाकर या दही से नहलाते उसके बाद , बासी खाना का भोग का प्रसाद चढ़ाते है। उसके बाद माता के चरणों का जल अपने और बच्चो के हाथ- पैर के लगाते है। फिर शीतला माता के चढ़ाया हुआ भोग बच्चो को खिलाने से बच्चो को कोई भी ,चिकन फॉक्स ,टाइफाइड ,जैसी बीमारी नहीं होती है। कुछ स्थानों पर तो शीतला अष्टमी का औरते व्रत भी रखती है। और व्रत में भी बासी खाना खाती है। इसलिए ही तो शीतला अष्टमी को बासोड़ा कहते है।
Sheetla Ashtami 2021 ,शीतला अष्टमी का पूजन का शुभ मुहूर्त :-
Sheetla Ashtami रविवार , 4 अप्रैल 2021 को
,शीतला अष्टमी का पूजन का शुभ मुहूर्त- सुबह 06 :08 से शाम को 06 :41 मिनट तक
अष्टमी तिथि शुरू 4 अप्रैल 2021 को सुबह 4 बजकर 12 मिनिट से
अष्टमी तिथि समाप्त 5 अप्रैल 2021 को 02 बजकर 59 मिनट तक
Sheetla Ashtami story (बासोडा ) 2021,शीतला सप्तमी व्रत कहानी /कथा :- प्राचीन समय की बात की एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया माई और उसकी दोनों बहुओ ने शीतला सप्तमी का उपवास (व्रत )किया था। और सभी को बासोड़ा का बासी खाना था। इसलिए उन्होंने एक दिन पहले ही रात को सबका खाना बनाकर रख दिया था ,क्योकि अगले दिन शीतला अष्टमी (बासोड़ा ) थी और माता को भोग जो लगाना था। और बुढ़िया माई के दोनों बहुओं के कुछ समय पहले ही बच्चे हुये थे। लेकिन दोनों बहुओ ने बासी खाना नहीं खाया क्योकि उन दोनों ने सोचा की अगर हम बासी खाना खायेगे तो हम और हमारे बच्चे बीमार हो जायेगे। इसलिये दोनों बहुओं ने ही बासोड़ा का बासी खाना नहीं खाया। और अपनी सास के साथ शीतला माता की पूजा करने के बाद पशुओ के लिए बनाये गये खाना के साथ बुढ़िया माई की दोनों बहुओं अपने लिए भी रोट बनाकर उसका चूरमा बनाकर ,और फिर खा लिया। जब उनकी सास ने बहुओं को बासोड़ा का बासी खाना खाने के लिए बुलाया तो बहुओ ने घर का काम करने का बहाना बनाकर अपनी सास की बात को टाल दिया। और बहुओ के ऐसा करने से शीतला माता उनसे नाराज हो गई। और उसके बाद दोनों बहुओ के बच्चो की मृत्यु हो गई। और फिर उसके बाद बुढ़िया माई को जब पता चला की उसकी बहुओ के बासी खाना नहीं खाया और गर्म रोटी बनाकर उसका चूरमा बनाकर खाया। जिसकी वजह से दोनों बहुओ की संतान की मृत्यु हो गई। तब उनकी सास(बुढ़िया माई ) को भी बहुत गुस्सा आया। और फिर दोनों बहुओ का अपने घर से निकाल दिया। उसके बाद दोनों बहू अपने बच्चो का शव लिये जा रही थी। रास्ते में उनको एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया। फिर वो दोनों उस बरगद के पेड़ के नीचे थोड़ा आराम करने के लिये बैठ गई। और वहाँ पर ओरी और शीतला नाम की दो बहने भी थी। जो अपने सिर में पड़ी जुओ से बहुत ही परेशान थी। उन दोनों बहनो को परेशान देखकर बुढ़िया की दोनों बहुओ को ओरी और शीतला पर दया आ गई। और उन दोनों बहनो के सिर की जुये निकालने लगी। तो उनके सिर में जुये कम होने से उन दोनों बहनो (ओरी और शीतला ) के सिर में बहुत आराम आया। तो उन दोनों बहनो ने बुढ़िया की बहुओ को आशीर्वाद दिया की तुम दोनों को गोद हमेशा हरी -भरी रहे। तब दोनों बहुओ ने कहाँ की हमारी तो हरी -भरी गोद उजड़ (लुट ) गई है। तब शीतला माता के क्रोध में आकर कहाँ पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। (जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलता है। ) तब दोनों बहुये समझ गई थी। की ये दोनों बहने दूसरी कोई और नहीं ये तो साक्षात शीतला माता है। तो वो दोनों बहू शीतला माता के पैर पड़ गई और अपनी गलती की माफ़ी मांगी ली। उसके बाद शीतला माता को भी उन दोनों बहुओ पर दया आ गई। और दोनों को माफ़ कर दिया। और उनके बच्चो को भी माता ने जीवित कर दिया। उसके बाद दोनों बहुओ ख़ुशी -ख़ुशी अपने गाँव वापस चली गई। और ये सब देखकर उनकी सास ( बुढ़िया माई) भी बहुत खुश हो गई। और फिर बुढ़िया माई ने सारे गॉव में डिंडोरा पिटवा दिया। और सब लोग शीतला माता के चमत्कार को देखकर सारे गॉव के लोग दंग (हैरान ) रह गये। और फिर उसके बाद सब लोग शीतला माता को मानने लगे। और इस तरह शीतला अष्टमी (बासोड़ा ) के दिन बसी खाना खाने की परम्परा बन गई।
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