Vat Savitri vart 2022 वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त  

वट सावित्री व्रत कथा सुनने  से मिलेगा अखंड सौभाग्य का वरदान और दुर्भाग्य  का होगा अंत। 

 Vat Savitri vart 2022

वट सावित्री का व्रत जेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को किया जाता है लेकिन कुछ माताएं बहने भक्तजन इस व्रत को जेष्ठ माह के शुक्ल पक्षी की एकादशी को भी करते हैं यानी कुछ माताएं बहने वट सावित्री अमावस्या का व्रत करती है वहीं कुछ माताएं बहने वट सावित्री पूजा का व्रत करती है अपनी अपनी श्रद्धा और परंपरा के अनुसार इस व्रत का पालन करती है लेकिन अधिकतर माताएं बहने और भक्तजन वट सावित्री का व्रत वट अमावस्या के दिन करती है यानी जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि को वट अमावस्या का व्रत किया जाता है

Vat_Savitri : वट सावित्री पूर्णिमा की कथा सुनने से मिलेगा अखंड सौभाग्य वरदान, दुर्भाग्य का होगा अंत - YouTube

त्रयोदशी से लेकर के अमावस्या तक इस व्रत का पालन किया जाता है इस दिन वट सावित्री अमावस्या का जो व्रत है  तथा इस दिन वट सावित्री अमावस्या का जब व्रत करते हैं।  तो उस दिन सत्यवान और सावित्री की मिट्टी अथवा सोने की मूर्ति बना करके उनका पूजन अर्चना  किया जाता है और 1 सूत का धागा लेकर के वट वृक्ष की 108 परिक्रमा लगाई जाती है उसके बाद वट सावित्री का पूजन अर्चन करके कथा  सुनती (करती ) है तथा रात्रि के समय जब चंद्रमा और तारों का उदय हो जाता है उस समय इस व्रत का पारणा किया जाता है जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए और अपने पति के लिए तथा बच्चों की प्राप्ति के लिए और घर में सुख शांति समृद्धि के लिए वट सावित्री का व्रत करती है।

वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त :-

  • ज्येष्ठ अमावस्या तिथि शुरू : 29 May 2022 दोपहर 02. 54 मिनट से शुरू होकर,

  • अमावस्या तिथि  समाप्त: 30 May , 2022 को शाम 04. 59 मिनट पर होगा

Vat Savitri vart महत्व :- 

वट सावित्री अमावस्या के दिन व्रत व्रत वृक्ष का पूजन करने से घर में सुख शांति समृद्धि का आगमन होता है इसके अलावा घर के परिवारों के सदस्यों को जो लंबी उम्र प्राप्त होती है और विशेष करके महिलाओं को इस व्रत को करना ही चाहिए उनसे उनका दुर्भाग्य समाप्त होगा तथा उन्हें उत्तम सौभाग्य की प्राप्ति होगी वट सावित्री व्रत में खानपान सावित्री ने प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सुध बुध छोड़ दी थी और यमराज से प्राणों की रक्षा की थी वैसे ही आज कलयुग में भी अब महिलाएं अपने पति और परिवार की रक्षा के लिए व्रत करती  है उपवास करती है तरह-तरह के नियम पालन करती है वट सावित्री के दिन व्रत रखकर के माता सावित्री से अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है पौराणिक कथाओं के माध्यम से पता चलता है सावित्री ने अपने पति को किस प्रकार से प्राणों की रक्षा की थी आज के समय में किस प्रकार वर्क को करना चाहिए तथा किस विधि से करना चाहिए और इस वर्ष के दिन किस प्रकार आपको नियम का पालन करना चाहिए।

वट सावित्री का व्रत अन्य वर्षो से अलग होता है व्रत में पूरे दिन व्रत नहीं रखा जाता है लेकिन कहीं-कहीं लोग पूरे पूरे दिन व्रत रखते हैं खास करके यूपी पंजाब हरियाणा और राजस्थान में इस व्रत को पूरे विधि विधान से रखा जाता है इस दिन जो पूजा में चढ़ाया जाता है उसे ही खाया जाता है यानी आम के फल इसमें विशेष रूप से चढ़ाए जाते हैं तथा चना ज्ञा चने की दाल जो भीगी हुई होती है दलाई हुई होती है पानी में उसे भी चढ़ाया जाता है खरबूजा चढ़ाया जाता है पूरी चढ़ाई जाती है इसके अलावा मालपुआ भी इस दिन चढ़ाया जाता है

लाल रंग की साड़ी या पीले रंग की साड़ी या हरे रंग की साड़ी का उपयोग ही इस दिन करना चाहिए और चूड़ी पायल बिछिया मेहंदी इत्यादि सोलह सिंगार जो किए जाते हैं वह सभी शृंगार से शृंगारिक होकर के सौभाग्यवती माताओं बहनों को इस दिन इस व्रत का पालन करना चाहिए और सबसे पहले अपने घर के भगवान का पूजन अर्चन करें नित्य पूजन अर्चन करने के बाद भगवान सूर्य देव को जल चढ़ाएं और उसके बाद आपको शुद्ध और सात्विक भोजन तैयार करना चाहिए और उसके बाद वट वृक्ष की पूजा करना चाहिए या नहीं रोली चावल हल्दी गुलाल इत्यादि वस्तु से वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए उसके बाद वटवृक्ष के समीप आम के फल चढ़ाएं भीगे हुए चने चने की दाल वहां पर चढ़ाएं और वहां पर खरबूजे चढ़ाना चाहिए इसके अलावा गुलगुले पूरी इत्यादि भोग लगाकर के 108 बार प्रक्रिया करें।

कच्चा सूत्र जिसे धागा कहा जाता है सफेद रंग का उसको लपेट कर के 108 बार वटवृक्ष की प्रक्रिया की जाती है वर्ष संपन्न होने के बाद जो वस्तुएं आपने चढ़ाई है इन्हीं चीजों को प्रसाद के रूप में खाते हैं व्रत के दौरान और पूजा के बाद चने को यह चने की दाल को सीधे निकल जाते हैं और बाद में चने की सब्जी बनाकर के खाई जाती है इसी तरह आम और आम का मुरब्बा खरबूजा की भी पूजा करते हैं और उसी का प्रसाद ग्रहण करते हैं आम को चढ़ा करके उसका मुरब्बा बना करके भी खाया जाता है खरबूजे को भी व्रत के दौरान ग्रहण किया जाता है और वट सावित्री का व्रत पूरी निष्ठा तथा श्रद्धा के साथ पालन किया जाता है।

वट सावित्री व्रत के दौरान सत्यवान और सावित्री की कथा महात्मा सुन कर के जो विधि विधि विधान से पूजा करता है और जो इस प्रकार हमने वस्तुएं बताई है उनका सेवन करता है उसका सुहाग अमर होता है ज्ञानी उसका दुर्भाग्य समाप्त हो जाता है और उनको उत्तम सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा उनके पुत्र को रो को लंबी उमर मिलती है उनके पति को भी लंबी आयु मिलती है और जो माताएं बहने वट सावित्री का व्रत करेगी उनको उस दिन शुद्ध सात्विक भोजन प्यार करके उस भोजन का ही भोग लगाना चाहिए और उसका ही सेवन करना चाहिए ध्यान रखना चाहिए वट सावित्री व्रत के दिन लहसुन प्याज का उपयोग बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए तथा वट सावित्री अमावस्या के दिन कोई भी मनुष्य दारी कटिंग या बाल ना कटवाए तथा शरीर के कोई भी अंग के कोई भी बाल नहीं कटवाना चाहिए यहां तक कि इस दिन नाखून भी नहीं कटवाना चाहिए।

वट सावित्री अमावस्या के दिन छूट नहीं बोलना चाहिए क्रोध नहीं करना चाहिए वाद विवाद नहीं करना चाहिए और सबसे बड़ी बात है कि इस दिन अपने घर के बड़े बुजुर्ग जैसे माता-पिता सास-ससुर इत्यादि का अनादर या अपमान नहीं करना चाहिए इन की सेवा करनी चाहिए और यदि आपके घर में कोई भी क्या अक्षर ज्ञान जरूरतमंद आए तो उसको खाली हाथ नहीं लौट आना चाहिए यानी कुछ ना कुछ दान पुण्य उसको अवश्य ही करना चाहिए इसके अलावा वट सावित्री अमावस्या के दिन पेड़ पौधों को काटना छांटना नहीं चाहिए वट सावित्री अमावस्या के दिन भूमि को खोजना नहीं चाहिए और वट सावित्री अमावस्या के दिन गरीब मजदूर को पीड़ा नहीं पहुंचाना चाहिए क्योंकि इस दिन शनि जयंती का महापर्व भी है इसीलिए खास करके गरीबों और जरूरतमंद लोगों को भोजन का दान अवश्य करना चाहिए।

तथा वट सावित्री अमावस्या के दिन किसी प्रकार से कोई भी गलत काम्या अनैतिक काम बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए और पूरे दिन इसका पालन करते हुए शाम के समय जब गौरव का उदय हो उसके बाद तारों को अर्क देने के बाद भोजन आप ग्रहण कर सकते हैं तथा दिन में सत्यवान और सावित्री की मूर्ति की पूजा करके उन मूर्तियों को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए इस दिन आप किसी धातु की मूर्तियां बना सकते हैं या मिट्टी की मूर्ति भी बना सकते हैं यह बनी बनाई मूर्ति भी घर ला करके आप उनका पूजन कर सकते हैं इसके अलावा इस दिन आप वट वृक्ष का चित्र की दीवार पर बनाकर के पूजा कर सकते हैं यदि आप किसी कारणवश अपने घर से बाहर नहीं जा सकते।  और वट वृक्ष की पूजा नहीं कर पाते हैं तो आप अपने घर में ही वट वट वृक्ष का गमला बनाकर के उसका पूजन अर्चन कर सकते हैं तथा उसकी परिक्रमा करें और जिस विधि से हमने आपको बताया है उस विधि से पूजन पाठ अर्चन करने के बाद में व्रत का समापन करें और जो माताएं बहने व्रत करती है उनको कथा का श्रवण भी करना चाहिए।

Vat Savitri vart katha  2022  

वट सावित्री  व्रत कथा ( कहानी )2022  

एक समय की बात है मध्य देश में अश्वपति नाम एक धर्मात्मा राजा निवास करते थे उनके यहां कोई संतान नहीं थी ना जाने राजा ने संतान प्राप्ति के उद्देश्य से एक महान यज्ञ का आयोजन किया कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई यानी एक कन्या का जन्म उनके घर पर हुआ जिन्होंने उसका नाम सावित्री रखा सावित्री अपने पिता के घर में बड़ी हुई और जब विवाह का समय आया तो सावित्री के लिए तुम मत सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया सत्यवान वैसे तो राजा का पुत्र था लेकिन उसका राजपाट समस्त सचिव चुका था अब वह बहुत ही दर्द था के साथ जीवन व्यतीत कर रहा था उसके माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी सत्यवान जंगली लकड़ी काट कर के जंगल से लाते थे और बेच बेच करके जैसे तैसे अपना गुजारा किया करते थे और अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे जब सत्यवान और सावित्री के विवाह की बात चली नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया की सत्यवान अल्प आयु है और विवाह के 1 वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

हालांकि राजा पशुपति सत्यवान की गरीबी को लेकर के पहले ही चलते थे और सावित्री को समझाने की कोशिश करने लगे नारद जी की बात से उन हूं और चिंता होने लगी लेकिन सावित्री अपने निर्णय मैं अडिग रही अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह संपन्न हुआ सावित्री सास ससुर और पति की सेवा करने लगी नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु का जो दिन बताया था उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में चली गई वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की  गोद में सर रखकर कुछ समय के लिए लेट गया कुछ देर बाद उनके समक्ष अनेक भूतों के साथ स्वयं यमराज वहां पर आ खड़े हुए।  और जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर के दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे प्रति व्रता सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगे आगे चलकर यमराज ने सावित्री से कहा है पतिव्रता नारी जहां मनुष्य साथ दे सकता था

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तुमने अपने पति का साथ दिया है अब तुम घर लौट जाओ इस पर सावित्री ने कहा जहां तक मेरे पति जाएंगे वहां तक मुझे जाना चाहिए यही सनातन सत्य है यमराज सावित्री को यह वाणी कहते हुए सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा सावित्री ने कहा मेरे साथ और ससुर दोनों ही अंधे हैं उन्हें आप नेत्र ज्योति प्रदान कर दीजिए यमराज ने तथास्तु कहकर के उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे किंतु सावित्री यमराज के पीछे ही चलती रहे यमराज प्रसन्न हो करके पुनः सावित्री वरदान मांगने को कहा सावित्री ने वरदान मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए यमराज ने तथास्तु कहकर पुनः उसे लौट जाने को कहा परंतु सावित्री अपने बात पर अटल रहे।  और उनके पीछे-पीछे निरंतर चलती रही

सावित्री ने पति के प्राणों को बचाया और सावित्री की पति की भक्ति को देख कर के यमराज का हृदय पिघल गया और उन्होंने सावित्री से कहा कि तुम एक और वरदान मांगू तब सावित्री ने वरदान मांगा कि मैं सत्यवान की सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं कृपा करके आप मुझे यह वरदान दे दीजिए सावित्री की पति भक्ति से प्रसन्न होकर के इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को प्रात से मुक्त करके अदृश्य हो गए जब सावित्री उस वटवृक्ष के पास आई तो उसने पाया कि वटवृक्ष के नीचे करें सत्यवान की मित्र शरीर में जीव का संचार हो रहा है कुछ देर में सत्यवान उठ करके बैठ गया उदय सत्यवान की माता की आंखें और पिता की भी आंखें ठीक हो गई और उन्हें अपना खोया हुआ राज्य भी पुनः प्राप्त हो गया।

उसी दिन से सभी माताएं बहने सत्यवान और सावित्री की याद में इस व्रत का पालन प्रतिवर्ष करती है और इस व्रत को करने से सभी माताओं बहनों को अपना सौभाग्य प्राप्त होता है और उनका दुर्भाग्य समाप्त हो जाता है तथा अपने पति की लंबी आयु उन्हें प्राप्त हो जाती है इस प्रकार सत्यवान और सावित्री को एस वर्ड के कारण है लंबी आयु प्राप्त हुए और उन्हें साथ में राज्य पाठ सब कुछ प्राप्त हो गया था इस प्रकार वट सावित्री का व्रत अत्यंत महान व्यक्ति माना गया है और इस वक्त का पूरी तरह से निष्ठा से पालन करने से सभी माताओं बहनों की मनोकामना अवश्य हैं पूर्ण हो जाती है।

निर्जला एकादशी की पूजा अर्चना  विधि और व्रत कथा