भगवान बृहस्पति की पूजा से दूर होंगे सरे दुःख यहाँ जाने पूजा-विधि कथा और आरती

भगवान बृहस्पति की पूजा से दूर होंगे सरे दुःख यहाँ जाने पूजा-विधि कथा और आरती

 

सप्ताह का हर दिन कोई भगवान को समपिर्त है और उस दिन उनकी पूजा-पाठ करने से लोगो को विशेष लाभ मिलता है ऐसे ही गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति का होता है और इस दिन उनकी पूजा का विधान है।

 

नई दिल्ली सप्ताह का हर दिन कोई न कोई भगवान को समपिर्त  उस दिन उनकी पूजा-पाठ करने से लोगो को विशेष लाभ मिलता है ऐसे ही गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति का होता है और इस दिन उनकी पूजा का विधान है वही दिन माँ लक्ष्मी और विष्णु बगवान की साथ में पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है जिनके विवहा में देरी हो रही है उनके लिए भी गुरुवार का व्रत करते है तो आपके घर में कभी भी पैसे रुपयों की कमी नहीं होती और आपका पर्स खली नहीं होता।

 

पूजा विधि

गुरुवार की पूजा विधि-विधान के साथ की जनि चाहिए व्रत के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर बृहस्पति देश की पूजा करनी चाहिए इस दौरान पिले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है पूजा में पिली वस्तुए जैसे पिले फूल चने की दाल मुनका पिली मिटाई पिले चावल और हल्दी चढाई जाती है।

 

इस व्रत में केले के पेड़ की पूजा भी की जाती है जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाया जाता है इसके बाद चने की दल और मुनक्का पेड़ की जड़ो में डालकर दिया जलाया जाता है और पेड़ की आरती उतरी जाती है पूजा के बज बृहस्पति देव की कथा भी सुन्नी चाहिए इस दिन दान-पुण्य का भी काफी महत्व होता है।

 

गुरुवार के दिन इन कामो को करने से बचे

 

* शास्त्रों के अनुसार माना जाता है की इस दिन महिलाओ को अपने बाल नहीं धोने चाहिए क्युकी महिलाओ की जन्मकुंडली में बृहस्पति का करक होता हौ साथ ही संतान का भी कारक होता है इस दिन बाल धोने से बृहस्पति ग्रह कमजोर होता है जिससे शुभ काम होने में अड़चन और हमेशा बीमारी बानी रहती है इस दिन बल भी नहीं कटवाना चाहिए क्योंकि असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है और उनकी उनती बाधित होती है।

 

* कपडे धोना पोछा लगाना कबाड़ बहार निकलना आदि आपके बृहस्पति ग्रह पर अधिक प्रभाव डालता है वास्तु के अनुसार माना जाता है की हमरे घर की दिशा ईशान कोण जिसका गुरु बृहस्पति ग्रह होता है साथ ही इस दिशा का संबंध परिवार के बच्चों शिक्षा और धर्म का होता है इसलिए ये काम नहीं करना चाहिए नहीं तो आपकी संतान शिक्षा और धर्म में अशुभ परभव पड़ता है।

 

बृहस्पति की कथा

 

प्राचीनकाल में एक बहुत ही निधर्न ब्रह्मण था उसके कोई संतान न थी वह नित्य पूजा-पाठ करता परन्तु उसकी स्त्री न स्नान करती और न किसी देवता का पूजन करती इस कारण ब्र्हामन देवता बहुत दुखी रहते थे अपनी पत्नी को बहुत समझते किन्तु उसका कोई परिणाम न निकलता भगवान की कृपा से भर्मण के यहाँ एक कन्या उत्पन हुई कन्या बड़ी होने लगी प्रात स्नान करके वह भगवान विष्णु का जप करती वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी पूजा पाठ समाप्त कर पाठशला जाती तो अपनी मुठ्ठी में जो भरके ले जाती और पाठशला के मार्ग में डलती जाती लौटते समय वही जौ को फटककर साफ कर रही थी की तभी उसकी माँ ने देख लिया और कहा की हे बेटी सोने के जौ को फटकने के लिए सोने का सूप भी तो होना चाहिए।

 

दूसरे दिन गुरुवार था कन्या ने व्रत रखा और वृहस्पतिदेव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की और कहा कहा की हे प्रभु यदि सच्चे मन से मेने आपकी पूजा की हो तो मुझे सोने का सुप दे दो वृहस्पतिदेव ने उसकी पप्रार्थना स्वीकार कर ली रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलती हुई पाठशला चली गई पाठशला से लौटकर जब वह जौ बिन रही थी तो वृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला उसे वह घर ले आई और उससे जौ साफ करने लगी परन्तु उसकी माँ का वही डांग रहा।

 

एक दिन की बात है कन्य सोने के सूप में जब जौ साफ कर रही थी उस समय उस नगर का राजकुमार वह से निकला कन्या के रूप और कार्य को देखकर वह उस पर मोहित हो गया राजमहल आकर वह भोजन तथा जल त्यागकर उदास होकर लेट गया।

 

राजा को जब राजकुमार दवरा अन्न मंत्रियो के साथ वह अपने पुत्र के पास गया और पूछा हे बीटा तुम्हे किस बात का कष्ट है किसी ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा कोई और कारण है मुझे बताओ में वही कार्य करूँगा जिससे तुम्हे प्रसन्नता हो अपनी पिता की बातें सुनकर राजकुमार बोलै हे पिताजी मुझे किसी बात का दुःख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परन्तु में उस लड़की के साथ विवाह कारना चाहता हु जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी राजकुमार ने राजा को उस लड़की के घर का पता भी बता दिया मंत्री उस लड़की के घर का पता भी दिया मंत्री उस लड़की के घर गया मंत्री ने ब्रह्मण के समक्ष राजा की और से निवेदन किया कुछ ही दिन बाद ब्रह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ सम्पन्न हो गया।

 

कन्या के घर से जाते ही ब्रह्मण के घर में पहले की भाँति गरीबी का निवास हो गया एक दिन द्दुखी होकर ब्रह्मण अपनी पुत्री से मिलने गए बेटी ने पिता की अवस्था को देखा और अपनी माँ का हल पूछा ब्रह्मण ने सभी हाल कह सुनाया  कन्या ने बहुत-सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया ब्रह्मण फिर अपनी कन्या के यहाँ गया और सभी हाल खा तो पुत्री बोली हे पिताजी आप माताजी को यहाँ लिवा लाओ में उन्हें वह विधि बता दूंगी जिससे गरीबी दूर हो जाए।

 

ब्रह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर अपनी पुत्री के पास राजमहल पहुंचे तो पुत्री अपनी माँ को समझने लगी हे माँ तुम प्रात काल स्नानदि करके विष्णु भगवान का पूजन करो और बृहस्पतिवार का व्रत करो तो सब दरिद्रता दूर हो जायगी परन्तु उसकी माँ ने उसकी एक भी बात नहीं मणि वह प्रात काल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का झुटान खा लेती थी एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया उसने अपनी माँ को एक कोठरी में बंद कर दिया प्रात उसे स्नानदि करके पूजा-पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गई इसके बाद वह नियम से पूजा पाठ करने लगी और प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत करने लगी इस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को गई वह ब्रह्मण भी सुखपूर्वक इस लोक का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

 

भगवान बृहस्पति की आरती

 

ॐ जय बृहस्पति देवा जय बृहस्पति देवा।

छीन-छीन भोग लगाऊ कदली फल मेवा। .

ॐ जय बृहस्पति देवा।

 

 

तुम पुराण परमात्मा तुम अंतयामी।

जगपिता जगदीश्र्वर तुम सबके स्वामी।

ॐ जय बृहस्पति देवा।

 

चरण निज निर्मल सब पातक हर्ता।

सकल मनोरथ दायक कृपा करो भर्ता।

ॐ जय बृहस्पति देवा।

 

तन मन धन अपर्ण कर जो जन शरण पड़े।

प्रभु प्रकट तब होकर आकर दावर खड़े।

ॐ जय बृहस्पति देवा।

 

सकल मनोरथ दायक सब संशय तारो।

विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।

ॐ जय बृहस्पति देवा।

 

जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।

जेष्ठान्नद बंद सो-सो निश्रय पावे।

ॐ जय बृहस्पति देवा।