Jaya Ekadashi 2021:- जाने कब है। जया एकादशी ? एकादशी के दिन क्या खाये और क्या नहीं खाना चाहिए। जाने व्रत के नियम।
,Jaya Ekadashi 2021:- माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत को पूरे विधि विधान से करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते है। अजा एकादशी के व्रत को श्रेष्ठतम व्रतो में से एक माना जाता है। इस एकादशी को अन्नदा या कामिका एकादशी के नाम से भी जानते है। ऐसा कहते है। कि इस व्रत के प्रभाव से राजा हरीशचंद्र को उनका खोया हुआ। राज -पाठ मिल गया था। और उनका पुत्र भी जीवित हो गया था। ऐसी मान्यता है। कि इस भगवान विष्णु की पूजा करने से पिशाच योनि का भय खत्म हो जाता है.
जया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त :-
एकादशी तिथि आरम्भ (शुरू ):- 22 Feb 2021 दिन सोमवार को शाम 05 बजकर 16 मिनिट से।
एकादशी तिथि समाप्त :-23 Feb2021 दिन मंगलवार शाम 06 बजकर 05 मिनिट तक।
जया एकादशी पारणा का शुभ मुहूर्त :-24 Feb को सुबह 06 बजकर 51 मिनिट से लेकर सुबह 09 बजकर 09 मिनिट तक।
पारणा की अवधि -2 घंटे 17 मिनिट
जया (अजा ) एकादशी के दिन किन -किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए :-
अजा एकादशी के व्रत में दशमी तिथि की रात में मसूर की दाल और लहुसन प्याज नहीं खाना चाहिए। और जया एकादशी के दिन ना ही चने और ना ही चने के आटे से बनी कोई भी चीज़ नहीं खानी चाहिए। और सबसे अहम बात कि ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।एकादशी का व्रत करके किसी की आलोचना (चुगली ,द्वेष की भावना ,और क्रोध )नहीं करनी चाहिए। एकादशी के व्रत में अन्न खाना वर्जित है।
जया एकादशी व्रत की पूजन विधि :- जया एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठे। और साफ हल्के पीले रंग के कपड़े पहने। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा में घूप ,दीपक , पीला फल,फूल ,और पंचामृत आदि का प्रयोग करना चाहिए। और तुलसी की माला से पीले आसन पर बैठकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का तीन माला जप करे। और तुलसी में जल जरूर से चढ़ाये।
जया एकादशी व्रत कथा :- प्राचीन समय की बात ,इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था। लेकिन उस गंधर्व का मन अपनी प्रियतमा को याद कर रहा था। इसी कारण से गंधर्व का गीत गाते समय उसका लय बिगड़ गया। इसी बात पर इन्द्र क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। और उसके बाद गंधर्व और पत्नी पिशाच योनि में जन्म लेकर पति और पत्नी दोनों कष्ट भोग रहे थे। लेकिन संयोगवंश माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि के दिन अपने दुखों से व्याकुल होकर दोनों पति -पत्नी ने कुछ भी नहीं खाया और रात में सर्दी की वजह से दोनों सो भी नहीं पाये। इस तरह गंधर्व और उसकी पत्नी से अनजाने में इनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। और एकादशी व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गये। और पुन: अपने वास्तविक रूप में लौटकर स्वर्ग पहुँच गये। लेकिन जब देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस उनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हो गये। उसके बाद गंधर्व और उसकी पत्नी ने बताया की उनसे अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो गया। एकदशी व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति (मोक्ष ) मिली है।
Not:- हम सब को भी एकादशी का व्रत करना चाहिए। क्योकि एकादशी का व्रत करने से हमारे पूर्वजो (पितरो ) का भी उधार हो जाता है।