लिवर की बीमारी और बुखार के इलाज में रामबाण है कालमेघ

 

लिवर की बीमारी और बुखार के इलाज में रामबाण है कालमेघ

काढ़ा बनाकर करें इस्तेमाल :

बुखार या वायरल के लिए गिलोय, तुलसी, जराकुश, अरुषा, काली मिर्च और कालमेघ की दो-तीन पत्तियाँ काढ़े की तरह उबाल कर पिएं।  यह सर्दी-जुकाम में भी लाभकरी है।  इसकी पत्ती के 3 से 5 एमएल रस को शहद के साथ लिया जा सकता है कैप्सूल, वटी (गोली), पाउडर के रूप में भी लिया जा सकता है।  कालमेघ आसव को 10-15 एमएल पानी में मिलकर दो बार ले सकते हैं।

कोरोना काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए औषधिय पौधों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। ‘एनबीटी जड़ी-बूटी’ अभियान में ऐसे औषधिय पौधों की पूरी जानकारी मिलेगी, ताकि आप इनका आसानी से इस्तेमाल कर सकें और अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकें। इसके तहत आज कालमेघ से जुडी हर जानकारी।

खून भी करता है साफ़ :

कालमेघ लिवर में पित्त के रेगुलेशन को संतुलित रखता है।  इसके अलावा बार-बार आने वाले बुखार, पुराने बुखार, मलेरिया, टायफाइड आदि में काफी असरदार है।  कालमेघ का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी में भी किया जाता है।  इसकी खून साफ करने के गुणों के कारण पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग कुष्ठ रोग, गोनोरिया, खरोंच, फोड़े, त्वचा विकार आदि के इलाज में किया जाता है। इसमें एंटीबायोटिक, एंटीट्यूमर, एंटी एलर्जिक गुण भी पाए जाते हैं।  बहुत कड़वा होने की वजह से गोली, कैप्सूल या सिरप के रूप में इसका इस्तेमाल प्रचलित है।

दुनियाभर में 1200 टन की खपत :

पूरी दुनिया में हर साल कालमेघ की 1200 टन की  खपत होती है। देश में 80 फीसदी कालमेघ वन क्षेत्र में मिलता है।  कालमेघ का पौधा सभी जगहों पर आसानी से पनप सकता है, लेकिन मिटटी में जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए।  बलई दोमट मिट्टी इसके लिए सब्सि अच्छी होती है। द ग्रीन सॉल्यूशन की सीनियर साइंटिस्ट और फाउंडर डॉं. ममता रावत ने बताया की इसे मई-जून में नर्सरी बनाकर रोपा जा सकता है।  जुलाई में पौधे खेतों में रोपने के लिए तैयार  हो जाते हैं।  इसके बाद करीब 100-110 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।