Nag Panchami 2021 :-इस वर्ष सावन में कब है। नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त और पैराणिक कथा

Nag Panchami 2021 :-इस वर्ष सावन में कब है। नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त और पैराणिक कथा

नाग पंचमी :- हर वर्ष  सावन  मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस साल पंचमी तिथि 13 Aug को है। इस दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है।

नाग पंचमी का  शुभ मुहूर्त  2021 :-

पंचमी तिथि शुरू : 12 Aug 2021 को दोपहर  3 बजकर 24 मिनिट से

पंचमी तिथि समाप्त : 13 Aug 2021 को दोपहर  1 बजकर 42 मिनिट तक ,

नाग पंचमी का पूजन मुहूर्त :13 Aug 2021 को सुबह  5 बजकर 49 मिनिट से 8 बजकर 28 मिनिट तक

शुभ मुहूर्त की अवधि :- 2 घंटे 39 मिनिट

नाग पंचमी की  Date 2021 :-

पंचाग के अनुसार नाग पंचमी का पावन -पर्व 13 aug 2021 ,शुक्रवार को सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को  मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। वैसे भी सावन का महीना चल रहा है.और सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिये है। नाग देवता भगवान के गले में हमेशा लिपटे रहते है। इसलिए नाग पंचमी के  दिन भगवान शिव  की पूजा -अर्चना करने का विधान है। नाग पंचमी पर नाग देवता के साथ भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करना बहुत ही शुभ होता है।

नाग पंचमी पौराणिक कथा

प्राचीन समय की बात है।  एक सेठजी के सात पुत्र थे सातों के विवाह हो चुके थे सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रष्ट चरित्र की विदुषी और सुशील थी परंतु उसके भाई नहीं था।

एक दिन बड़ी बहु ने घर लीपने को पिली मिट्टी लेन के लिए सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी तभी वहां एक सर्प निकला जिसे बड़ी भू खुरपी से मरने लगी।
यह देखकर छोटी भू ने उसे रोकते हुए कहा मत मारो इसे यह बेचरा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहु ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक और जा बैठा तब छोटी भू ने उससे कहा हम अभी लौट कर आती है तुम यहां से जाना मत यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन यह बात यद् आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बीटा देखकर बोली सर्प बीटा नमस्कार।

Nag Panchami 2021 : जानिए नाग पंचमी के दिन क्यों सर्प को पिलाया जाता है दूध ! | Nag Panchami story and puja vidhi | TV9 Bharatvarsh

सर्प ने कहा तू भैया कह चुकी है इसलिए तुझे छोड़ देता हु नहीं तो झूटी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता।
वह बोली: भैया मुझसे भूल हो गई उसकी क्षमा मांगती हूँ।
तब सर्प बोलै:अच्छा तू आज से मेरी बहिन हुई और में तेरा भाई हुआ तुझे जो मांगना हो माँग ले। वह बोली मेरा कोई भैया नहीं है अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया। कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोलै की मेरी बहिन को भेज दो सबने कह की इसके तो कोई भाई नहीं था तो वह बोलै मै दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ बचपन में ही बाहर चला गया था उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगो ने छोटी को उसके साथ भेज दिया उसने मार्ग में बताया की वहीं सर्प हूँ इसलिए तू डरना नहीं और झा चलने में कठिनाई हो वह और झा चलने में कठिनाई हो वह मेरी पूछ पकड़ लेना उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वः उसके घर पहुंच गई वहाँ के धन-ऐशर्य को देखकर वः चकित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा मै एक काम से बाहर जा रही हूँ तू अपने भाई को ठंडा दूध पीला देना उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पीला दिया जिसमे उसका मुख बेतरह जल गया यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई परन्तु सर्प के समझने पर चुप हो गई तब सर्प देना चाहिए तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना चाँदी जवाहरात वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया। इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने इशरो से खां भाई तो बड़ा धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुऍ सोने की लाकर दे दी। यह देखकर बड़ी बहू ने खा इन्हे झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए तब सर्प ने झडू भी सोने की लेकर रख दी।

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सर्प ने छोटी बहू को हिरा-मणियों का एक अदुत हार दिया था उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वः राजा से बोली की सेठ की छोटी भू का हार यहाँ आना चाहिए राजा ने मंत्री को हुक्म दिया की उससे वः हर लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहां की महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी वः उससे लेकर मुझे दे दो सीताजी ने डॉ के कारण छोटी भू से हर मंगाकर दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी उसने अपने सर्प भाई को यद् किया और आने पर प्राथना की भैया रानी ने हार छीन लिया है तुम कुछ ऐसा करो की जब वह हार उसके गले में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लोटा इ तब हीरो और मणियों का हो जाए सर्प ने ठीक वैसा ही किया जैसा ही रानी ने हर पहना वैसे ही वः सर्प बन गया यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी की छोटी बहू को तुरंत भेजो सेठजी डॉ गए की राजा न जाने क्या कर्जा वे सव्य छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए राजा ने छोटी बहू से पूछा तूने क्या जादू किया है में तुझे दंड दूंगा छोटी बहू बोली राजन धृष्टा क्षमा कीजिए यह हार ही ऐसा है की मेरे गले में हीरो और मणियों को रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है।
यह सुनकर राजा ने वः सर्प बना हार उसे देकर कहा अभी पहिनकर दिखाओ छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरो मणियों का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राए भी पुरस्कार में दी छोटी वः अपने हार और इन सहित घर लौट आई उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने इशरो के कारन उसके पति को सिख्या की छोटी बहू के पास कहि से धन आया है यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा ठीक-ठीक बता की यह धन तुझे कौन देता है तब वः सर्प को यद् करने लगी

। तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मै उसे खा लूंगा यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने दर्प देवता का बड़ा सत्कार किया उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती है।

 

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