Pitar Paksh 2021 :-श्राद्ध / पितृ पक्ष के दिनों मे दिखे यह 7 संकेत तो समझे आपके पूर्वजों का आशीर्वाद है आपके ऊपर, श्राद्ध पक्ष में चमक सकती है आपकी किस्मत

Pitar Paksh 2021 :-श्राद्ध / पितृ पक्ष के दिनों मे दिखे यह 7 संकेत तो समझे आपके पूर्वजों का आशीर्वाद है आपके ऊपर, श्राद्ध पक्ष में चमक सकती है आपकी किस्मत।

 

Pitru Paksha 2021 will start from 20 September do not forget to do these mistakes

शास्त्र  कहते हैं कि पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते हैं वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान व तर्पण की आशा  भी  रखते हैं ताकि उन्हें मन भर कर आशीर्वाद दे सके श्राद्ध-तर्पण से पितृ को संतुष्टि मिलती है पितृगण खुश  होकर संतान सुख धन-धान्य विद्या, राजसुख यश-कीर्ति, पुष्टि शक्ति स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं लेकिन वे इतने नाजुक होते हैं कि छोटी सी गलती उन्हें आहत कर देती है वे अपनी उपेक्षा से रूठ जाते हैं अगर वे देखते हैं कि उनके वंशज सामाजिक बुराई में लगे हैं बैर क्रोध नशा या अपशब्द से वे कुपित हो जाते हैं और श्राफ  देकर जाते हैं अत: ध्यान रखें कि ऐसी  कोई  भी गलती आप से ना हो।  जो उन्हें दुखी करें भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तिथि तक 16 दिन श्राद्धकर्म किए जाते हैं

श्राद्ध करने की  विधि:-

श्राद्ध के दिनों में अपने पूर्वजो के लिये खीर हमेशा गाय के दूध से ही बनाये और  क गोबर के उबला  को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित करें प्रज्वलित उबला  को किसी बर्तन में रखकर दक्षिणमुखी होकर खीर से तीन आहुति दें सर्वप्रथम गाय ,काले कुत्ते ,और कौए के लिये  ग्रास(निवाला ) अलग से निकालकर उन्हे खिलाएं इनको ग्रास डालते हुए याद रखें कि आप का मुख दक्षिण दिशा की तरफ हो साथ ही जनेऊ (यज्ञोपवित) सव्य (बाई तरह यानि दाहिने कंधे से लेकर बाई तरफ होना चाहिए इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
 ब्राह्मणों को श्रदा अनुसार  दक्षिणा दे महाभारत के दौरान कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया वह तो भोजन (खाना ) तलाश रहे थे।उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह पता (मालूम  ) ही नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका(अवसर ) दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें भोजन  दान किया तर्पण किया इन्हीं 16 दिन की समय  (अवधि )को पितृ पक्ष कहा गया

पितृ पक्ष की कथा /कहानी :-

जोगे तथा भोगे दो भाई थे दोनों अलग-अलग रहते थे जोगे धनवान (अमीर ) था और भोगे निर्धन(गरीब ) दोनों में आपस मे बहुत प्यार ( बड़ा प्रेम) था जोगे की पत्नी को धन का \; (अभिमान) था किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।

अतः वह बोली-आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई उसने रसोई तैयार की अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका न वह रुकी शीघ्र ही दोपहर हो गई पितर भूमि पर उतरे जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं निराश होकर वे भोगे के यहां गए वहां क्या था मात्र पितरों के नाम पर अगियारी दे दी गई थी पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई फिर वे सोचने लगे-अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी

यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे-भोगे के घर धन हो जाए भोगे के घर धन हो जाएसांझ होने को हुई भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना बच्चे वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ दूसरे साल का पितृ पक्ष आया श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया भोजन कराया, दक्षिणा दी जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

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