पीपल की पूजा कब , कैसे करें , नियम , उपाय व लाभ ? पूरी जानकारी !
पीपल के पेड़ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र और विशेष मन गया है। यह हिन्दू धर्म में बहुत पूजनीय है पीपल को कलयुग का कल्क पेड़ मन गया है। पीपल एक मात्र पवित्र पेड़ है। जिसमे जिसमे सभी देवताओ के साथ मित्रो का वास रहता है। भगवत गीता के दसवे अध्याय में भगवन श्री कृष्ण ने कहा है की मैं वृक्षों में पीपल हु। जिसके मूल में भ्रह्मा जी , मध्य में विष्णु जी तथा उग्र भाग में भगवन शिव जी का साक्षात रूप विराजित है। पीपल के पेड़ को विश्व वृक्ष , चैत्य वृक्ष और वासुदेव के नाम से भी जाना जाता है।
पीपल के पेड़ के लाभ –
> पीपल के पेड़ की पूजा करने , जल चरने और मोली बधान से सभी कामनाओ की पूर्ति होती है।
> वही शत्रु का भी नाश होता है।
> यह धन धन्य , ईष्वरी , लाभ आयु और सुख शोभज्ञ प्रदान करने वाला है।
> इसकी पूजा करने से घ्रः शांत रहते है।
>पीड़ा काम रहती है और पितृ से बने वाले दोषो से भी दूर रखने में मदत मिलती है।
पीपल की पूज करने के साथ साथ हनुमान की पूजा करने से सभी परेशानी दूर हो जाती है। रोज शुबहा रविवार को छोड़ कर नियमित रूप से पूजा करने से शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है और हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो को दिया जलने से पेड़ पर विराज मन देवता सदए पर्सन रहते है। करो बार के अच्छा मुनाफा होता है। आप के जीवन में खुशी अति है। पीपल के पेड़ के कुछ अंगो को शारीरिक बीमारी को दूर करने में मदद मिलती है। जैसे त्वचा रोग ,दाग़ , खाज , खुजली , पेट दर्द , फटी एड़ी , आखो के दर्द , दातो में दर्द अदि। पीपल के छाया में ऑक्सीजन से भर पुर वातावरण नियमित होता है इस वातावरण में मनुष्य की स्वस्थ ठीक रहती है। इसलिए पीपल के पेड़ की 108 बार इसकी प्रकियां लगाने का विधान है। इसे व्यक्ति की उम्र लम्बी होती है। अभी पापो से छुटकारा मिलता है। पीपल की पूजा करने से शादी में आ रही बाधा का भी निवारण होता है। पीपल के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति में दान धर्म की पर्वती उत्तपन होती है। पीपल में पितरो का वास मन गया है और और इसमें सभी तीर्थो का वास भी मन गया है। इसलिए अभी शुभ कार्य पीपल के नीचे कारवां शुभ माना गया है। पीपल की नियत्रण पूज अर्चना करने से संतान की प्राप्ति होती है। पीपल की पूजा करने से और इसके निचे पूजा हावन करवाने से कमजोर भृस्पति मजबूत होता है।
अब बात करते है की किस दिन इसकी पूजा नहीं करनी चाहिए। वैसे तो पीपल की पूजा करना शुभ मन जाता है। बीस रविवार को पीपल की पूजा नहीं की जाती। रविवार को पूजा करने से यह सब उल्टा होता है। रविवार को पूजा करने से पैसो की तंगी बड़ी रहती है। इसके ऊपर एक कथा भी है जब भगवन विष्णु ने माता लक्षमी से विवाह करना चाह तो माता लक्षमी ने मन कर दिया क्युकी उनकी बहन का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवह के बाद ही माता लक्ष्मी भगवन विष्णु से विवाह कर सकती थी। फर विष्णु जी ने उनकी बहन से पूछा की वह कैसा वर चाहती है। उसने कहा की मुझे ऐसा वर चाहिए जो कभी पूजा पाठ न करता हो और मुझे ऐसे इस्थान में रखे जहा कोई पूजा न होती हो। भगवन विष्णु ने उनके लिए ऋषि नमक वर चुना वह दोनों विवह के सूत्र में बांध गए अब बहन के शर्त के अनुसार उन दोनों को ऐसी जगह पर रहना था जहा कोई पूजा का कार्य न होता हो। ऋषि उनके मन भवन इस्थान डुडाने चले गए लेकिन उन्हें ऐसा कोई इस्थान न मिला उनकी बहन उनके इंतजार में विलम करने लगी। श्री विष्णु जी ने पुनः लक्ष्मी जी के सामने विवह का प्रस्ताव रखा। तो लक्षमी जी ने कहा जबतक मेरी बेहेन की ग्रहस्ती नहीं बसेगी तब तक में विवह नहीं करुगा। धरती पर कोई ऐसा इस्थान नहीं है जहा जो धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने विवह इस्थान पीपल को रविवार के लिए बहन और उसके पति को दे दिया अब वह अब हर रविवार को पीपल के नीचे भगवानो का वास नहीं होता। हर रविवार के दिन पीपल के पेड़ में बहन और उसके पति का वास होता है। इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। रात को भी पीपल की पूजा वर्जित माना गया है। क्युकी ऐसा माना जाता है की रात में पीपल में बहन बरती है और सुबह होने के बाद लक्ष्मी का वस मानागया है। पीपल को भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त है। जो इस पीपल के पेड़ की पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करेगा उस पर माता लक्ष्मी की अपार किरपा रहेगी। शनिवार को इसकी पूजा करने से उससे शनि के प्रकोप से दूर रहेगा और उसके घर में ऐश्वर्या कभी समाप्त नहीं होती।
अब बात करते है पीपल के पेड़ की पूजा कैसे करनी चाहिए – सुबह नाहा धोकर स्वछ कपड़े पहन लीजिये। रविवार को छोड़ कर इसकी पूजा कभी भी कर सकते है। रोज पूजा न हो सके तो शनिवार को जरूर करे। भ्रम मुहूर्त में मंदिर जाना शुभ होता है पर इस समय पीपल की पूजा न करे। पीपल की पूजा सूर्य निकलने से पहले करे। सबसे पहले जल अर्पित करे जल को अर्पित करते समय जल में थोड़ा गंगा जा मिला ले और जल में थोड़ा मीठा जरूर मिला ले। मिश्री , गुड़ , चीनी कुछ भी दाल सकते है। शनि सम्भधींत कोई भी समस्या हो तो इसमें थोड़ा तिल भी मिला ले। तिल का जल पेड़ के जड़ में अर्पित करे , धुप बाती करे और मोगरा अर्पित करे, भोग लगाए , काली तिल भी उस पर चड़ सकते है। भोग किसे भी मेथी चीज का लगा सकते है दियान रहे चराए हुए जल को अपने नेत्रों में जरूर लगाए। सात बात प्रक्रिमा करे वैसे तो आप 21 , 108 बार भी कर सकते है। लेकिन शनिवार को साथ बार प्रकिमा करने का विधान है। इससे कल दोष , शनि दोष से मुक्ति मिलती है। प्रकिमा करते समय शनि भगवन के मंत्रो का जाप करना चाहिए। इसके बाद सरे अपने सारी मनो कामना करनी चाहिए। और अपनी गलतियों की शमा याचना करनी चाइये। शाम से समय आटे के दीपक में सरसो के तेल से पूजा करनी चाहिए। उपाए ते तोर पर उसमे 11 साबुत के दाने भी दाल दे और एक कील भी रखे। उससे भी शनि के प्रकोप से राहत मिलती है। भोग भी अर्पित करे। शुब्ह के शामे जो जाल उसमे से थोड़ा जाल घर ला कर जरूर रखे इसे घर में सुख समृद्धि और शांति बानी रहती है। अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से बहुत लाभ दायक होता है। खासकर शनिवार के अमावस्या के दिन। इस दिन पूजा , चाय दान करने से शनि के प्रकोप से दूर रहते है। सोमवती पूजा के दिन इसकी पूजा का बड़ा महत्व है। उस दिन 108 बार प्रकिमा करने का विधान है। पेड़ की पूजा करने पर ॐ पितृ देवाये नमः का जाप करना चाहिए। राहु , केतु , शनि और पितृ के दोषो का निवारण होता है। इस दिन संकल्प लेकर पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करे तो बहुत अच्छा मन जाता है। जैसे की आप 11 , 21 या 108 शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करुँगी या करुगा। कहकर की हे ! भगवन मेरी सभी परेशानी दूर करो। शनिवार को माँ लक्ष्मी का वास माना जाता है इसलिए पीपल की पूजा इस दिन जरूर करे।
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