10 minat karen yah paanch praanaayaam kabhee nahin honge beemaar
10 मिनट करें यह पांच प्राणायाम कभी नहीं होंगे बीमार
भस्त्रिका कपालभाति बहीय्पराण्यम उच्चाई अनुलोम विलोम भरम्भ भरोदकी ध्यान इस प्रक्रिया को पूरा करेंगे ध्यान मुद्रा , वाई मुद्रा , शन्न मुद्रा , प्रथ मुद्रा , वरुण मुद्रा , शत्रु मुद्रा , अपान मुद्रा एक साथ दो दो मुद्राओ का भी अभ्यास कर सकते है जैसा आवस्यकता हो जैसा आवश्यक हो जैसी आवस्यकता हो उसी प्रकार की मुद्रा का चायन कर सकते है। भस्त्रिका और कपाल हमने तीव्र गति मध्यम और सामन्न गति तीनो प्रकार से कहा आयु और आवस्यकता के हिसाब से तो ये केवल और केवल यांग ट्रेस के लिए है जो पूरी तरह से निरोगी हे योगी हे बलवान है। उनके लिए बाकि मध्यम गति से जिनको उच्चरक्त चाप ह्रदय रोग हर्निया कमर में दर्द कमजोरी विशेष है सामन्य गति से वो मध्यम वन का भी प्रयोग नहीं कर सकते इनके लिए सामान्य बल पूर्वक करना गति का चयन अपनी शक्ति के अनुसार करे ये जो एक सामान्यगति होती है प्राण के प्रविस्ट होने से उतनी हुए हमारे शरीर में एक ऊर्जा अजा मंडल और ये प्राणी ओरा कहते है संस्कृत में हिंदी में इसको आभा मंडल कहते है उससे हमारा पूरा सितत्व जीवतीर्व तेजो में हो जाता है हम सत्व में प्रतिश्ठित हो जाती है
भस्रिका के बाद कपाल भांति ये भी तीन प्रकार की गति तीव्र गति जो पूरी तरह से योगी भी हे निरोगी भी है उनके लिए मध्यम गति सबके लिए जिनको बहुत अधिक उच्चरक्त चाकव है ह्रदय रोग हे हर्निया है कमर में दर्द हे उनके लिए धीमी अवस्य्क्ता में करे गति के चयन अपने आप आवश्यकता आयु और अवस्था के अपसर करेंगे सभी गति पूर्वक भी करते है तो शक्ति पूरी लगती है उसमें मध्यम गति सामान्य गति कपाल भाति निरंता के साथ ही कीजिए इसे कपाल भाति के बाद एक बार बहीय्पराण्यम कर ले एक बार उच्चाई अनुलिम विलोम भरम्भ भरोदकी ध्यान पर ध्यान करेंगे उज्जयन बहीय्पराण्यम में बहियां कुम्भक का कम से कम आधा मिनट है
और आपके अंतनर्प्रणयम में कम से कम आधा मिनट आध्यंतर कुंभक के अभ्यास हो न चाहिए अनुलिम विलोम करेंगे लय के साथ करना वायु मुद्रा में हाथ रखना तो बहुत अच्छे से हो जाता है घुटने के ऊपर जो हाथ हे वो भी वायु मुद्रा में जो ऊपर हाथ हे वो वायु मुद्राहाथ ज्यादा ऊचा भी नहीं रखना और ज्यादा नीचे भी नहीं रखना सेहता पूर्वक लम्बा लेना सेहता पूर्वक लम्बा छोड़ना पूरी एकाग्रहत पूर्वक करना एक लय के साथ करना और जब हम इस योग्य का अभ्यास इस प्रकार से निरंतरता के साथ करते है।
और गुरुतत्व के साथ एकात्म होकर के परम गुरु के साथ उस जगतनियन्त्र सर्वज्या सर्वस शक्तिमान सर्वाधार सर्वेश्वर सचिदानंद सर्व्यापक अचर अमर नित्य नाशी पूर्ण भ्रमा के साथ जुड़ जाते है तो जीवन के सारे दुख का अंत हो जाता है। सारे विकाहट से विकाहट संखट का भी अंत हो जाता है। सारे रोगो से मुक्त हो जाते है सारे दुख और दरिद्र्ताओ से सारी दीनताओ से सारे आभाव से मुक्त हो जाते है। अपनी सुरूप की पूर्णता और ब्रम्भ की पूर्णता को अनुभव करने लगते है। उधगीत प्रणय ओम ॐ मोन और बहार से सम मंद मंद बहार से भीतर जा रहा है। उस विश्वास के साथ तथा भीतर से जो मंद मंद प्रस्वास उपहार निकल रहा है इस प्रसास के साथ स्वास सा प्रस के साथ ॐ का उद्यान करे
स्रस्तम मनवा टिकलिया अथवा नाशिका ग्रपर प्रदय चक्क्र में मणिपुर चक्र्र में सेहशर में अजिया चक्क्र में जहा अनुकूलता थी तो अभ्यास वही पर मन को टिका के केंद्रीय से लेकर के परिधि तक वियास्टी से लेके समस्ती तक मनुष्यों से लेके मनुष्या पर जितना भी है दीव जगत है पुरे अश्तित्व में आस्तिकता का भाव टिक्स आवास से हम हितम सवर्म यतत केम जगत का वियाम करना दोनों हाथो को ऊपर उठा लेते है आपस में रगड़ते है जैसे जैसे अगवान के साथ एकात्म होते जाते है
वैसे ही भगवान की दिवीय ज्ञान भगवान के तीवय प्रेम तीवय संवेदनाओ भगवान के दिव्य वेदनाओ तीवय कारनामो पुसार्थे दिव्य समर्थ दिव्य संपर्क में आते जाते है ये वेद योग की नई महिमा और थोड़ी देर के लिए ध्यान करते है फिर इसके निरंतरता दिन भर बानी रहे दिन भर ये ध्यान बना रहे की में एक यंत्र पात्र हु मुझमे सम्पूर्ण समर्थित जीवय ज्यान का समर्थत हे करवपूर्व का समर्थ है भावनाओ के समर्थ है जितना भी जीवन का विविधायसरी सब भगवान का दिया हुआ है ये ध्यान निरंतर बना रहे तो ये ध्यान हमारा ये हे 24 घंटो का हो जाता है।