Pitar Pksha ki Indira Ekadashi 2021:- श्राद्ध या पितृ पक्ष की एकादशी को अपने सभी पूर्वजों की मुक्ति के लिए जरूर करें उपाय।

 Pitar Pksha ki Indira Ekadashi 2021:-   पितृ एकादशी को अपने सभी पूर्वजों की मुक्ति के लिए जरूर करें उपाय,

शास्त्र के अनुसार कहते हैं कि पितृ बहुत ही  दयालु और कृपा करने वाले  होते हैं वह अपने पुत्र-पौत्रों (अपने बेटे पोतो ) से पिण्डदान व तर्पण की आशा  भी इसलिए रखते हैं ताकि उन्हें मन भर कर आशीर्वाद दे सके,श्राद्ध-तर्पण से पितृ को ख़ुशी  मिलती है पितृगण प्रसन्न होकर संतान सुख धन-धान्य विद्या राजसुख यश-कीर्ति पुष्टि शक्ति स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं लेकिन आपकी एक  छोटी सी गलती भी  उन्हें दुःखी  कर देती है  अगर वे देखते हैं कि उनके परिवार के लोग  सामाजिक बुराई में लगे हैं बैर क्रोध नशा या गाली -गलोच (अपशब्द ) से वे कुपित हो जाते हैं और श्रॉफ  देकर जाते हैं अत: ध्यान रखें कि ऐसी कोई भी गलती आपसे ना हो।   जो उन्हें दुखी करें भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तिथि तक 16 दिन श्राद्धकर्म किए जाते हैं

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श्राद्ध करने की विधि:-

श्राद्ध के दिनों में अपने पितरो के लिये खीर हमेशा गाय के दूध से ही बनानी चाहिए। और उसमे  शक्कर इलायची  व शहद मिलाकर खीर बनाएं।
गाय के गोबर के उबले  को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित करें प्रज्वलित  उबले को किसी बर्तन में रखकर दक्षिणमुखी होकर खीर से तीन आहुति दें.सबसे पहले  गाय, काले कुत्ते व कौए के लिये  ग्रास अलग से निकालकर उन्हे खिलाएं, इनको ग्रास डालते हुए याद रखें कि आप का मुख दक्षिण दिशा की तरफ हो। साथ ही जनेऊ (यज्ञोपवित) सव्य (बाई तरह यानि दाहिने कंधे से लेकर बाई तरफ होना चाहिए इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।उसके बाद अपनी श्रदा के अनुसार  ब्राह्मणों को  दक्षिणा दे.,महाभारत के दौरान कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया वह तो  भोजन (खाना ) तलाश रहे थे उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया।

 

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तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह मालूम (पता ) नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें भोजन खिलाया , दान किया और तर्पण भी  किया इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है

पितृ पक्ष की कथा /कहानी Story :-

 जोगे तथा भोगे दो भाई थे दोनों अलग-अलग रहते थे जोगे बहुत धनवान  था और भोगे बहुत गरीब ( निर्धन)। लेकिन दोनों में आपस में बहुत प्यार ( बड़ा प्रेम) था जोगे की पत्नी को धन का घमंड ( अभिमान ) था किंतु भोगे की पत्नी बहुत सुशील ,संस्कारी और  सरल सहभाव की  थी पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की कोशिश  करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे फिर उसे अपने मायके वालों को खाने  पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह अच्छा मौका (उचित अवसर) लगा।
अतः वह बोली-आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी फिर उसने जोगे को अपने पीहर निमंत्रण  देने के लिए भेज दिया दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में लग  गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई पितर पृथ्वी  पर उतरे जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन कर रहे थे।  निराश होकर वे भोगे के घर गये लेकिन भोगे गरीब होने के कारण श्राद का खाना नहीं बना सका और वह सिर्फ  पितरों के नाम पर अगियारी’ दे दी गई थी

पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के किनारे  पर जा पहुंचे।थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे( गरीब नहीं होता तो शायद वह श्राद्ध जरूर करता)  समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे-भोगे के घर धन हो जाए भोगे के घर धन हो जाए।शाम होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था उन्होंने मां से कहा-भूख लगी है

तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- जाओ आंगन में हौदी औंधी रखी है उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना बच्चे वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ दूसरे साल का पितृ पक्ष आया श्राद्ध के दिन भोगे की पत्नी  ने छप्पन प्रकार के भोजन  बनाएं और  ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया भोजन कराया दक्षिणा दी जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

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