तुलसी विवाह 2020

 

तुलसी विवाह 2020 देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त ,पूजन विधि और व्रत कथा 

Tulshi vivah ki pujan samgri(तुलसी विवाह की पूजन सामग्री )

देवउठानी एकादशी के दिन तुलसी माता को लाल रंग की चूनरी ,सिंदूर ,मेंहदी,बिंदी ,चंदन ,रोली,मोली ,फल ,फूल,सुहाग के  सामान की चीजें ,अक्षत ,मिठाई ,और पूजन सामग्री आदि भेट की जाती है।देवउठानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को गन्ने का मंडप बनाकर उसके नीचे बैठाकर पूजा की जाती है। और पूजा में शक्करगंध ,सिंगाडा ,मूली ,बेर ,आवला ,केला, सेब.आदि फल चढ़ाये जाते है।

तुलसी विवाह की पूजन सामग्री की लिस्ट :-

1 .घी

2 सिंदूर

3 .रोली-मोली

4 .मेहंदी

5 .चंदन

6 फल

7 फूल

8बिंदी

9चावल

10 सफेद मिठाई

11 केला

12 सिंघाड़ा

13 शक्करगंध

14 मूली

15 गन्ना

16 बेर

17 आँवला

18 कुमकुम

19 पानी का कलश

20 दीपक

21 लाल रंग की चुनरी

 

तुलसी विवाह के लिए पूजन विधि:-

सबसे पहले तुलसी के पौधे के चारों तरफ एक मंडप बनाया जाता है। अब तुलसी के पौधे को लाल चुनरी उधाएं और श्रृंगार की सभी चीजें प्रदान करें। इसके पश्चात अब गणेश जी और शालिग्राम भगवान की पूजा करें। फिर शालिग्राम भगवान की मूर्ति का सिहांसन अपने हाथ में लें और तुलसी जी के साथ सात परिक्रमा कराएं। अब इनकी आरती करें और विवाह मंगलगीत गाएं।

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तुलसी विवाह की कथा:-

धार्मिक मान्यतानुसार, एक कन्या का जन्म राक्षस कुल में हुआ, जिसका नाम वृंदा था। वृंदा बचपन से ही विष्णु भगवान की भक्त थी और हमेशा ही उनकी भक्ति में लीन रहती थी। वृन्दा जब बड़ी और विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह जलंधर नाम के एक राक्षस से हो गया, जलंधाए समुंद्र मंथन से पैदा हुआ था। विष्णु भगवान के सेवा और पतिव्रता  कारण जलंदर बहुत ही शक्तिशाली हो गया। पूरी दुनिया  जलंदर से डरने लगी यहा तक की देवी – देवता भी उसके आतंक से भी थर्रा उठे। जलंदर जब भी युद्ध पर जाता तब वृंदा अनुष्ठान पर बैठ जाती, जलंधर कभी भी नहीं हार पाता। कुछ समय बाद जलंधर ने सभी देवताओं पर आक्रमण कर दिया और एक – एक करके सारे देवता पराजित हो गए और जलंधर जीत गया। इसके पश्चात् सभी देवी – देवताओं ने विष्णु भगवान के पास शरण में गए। सभी ने विष्णु भगवन से कहा की जलंधर का विनाश ख़तम होना चाहिए। इसके बाद विष्णु भगवान ने जलंधर के वेश में छल से वृंदा के पास गए और वृन्दा के पतिव्रत धर्म को भंग कर दिया। इस कारण जलंधर की शक्ति कम हो गई और वह युद्ध में मारा गया। वृंदा को जब विष्णु भगवन के चल के बारे में पता चला तो वृंदा ने विष्णु भगवन को श्राप दे दिया की वह पत्थर के बन जाए। इसके पश्चात विष्णु भगवान पत्थर के होने लगे, इसे देख लक्ष्मी माता ने वृन्दा से प्राथना कि की वह अपना श्राप वापस ले लें, जिसके बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और वृंदा जलंदर के साथ सती भस्म हो गई। इसके बाद वृंदा की राख से एक पौधा निकला जिसको विष्णु भगवान ने तुलसी नाम दिया। फिर विष्णु भगवान ने खुद के एक रूप को पत्थर में परिवर्तित कर कहा, आज से मैं तुलसी के बिना कोई भी प्रसाद स्वीकार नहीं करूँगा। और इसी पत्थर को शालिग्राम का नाम दिया गया। और शालिग्राम को हमेशा तुलसी जी के साथ पूजा जाता है। तब से ही तुलसी जी की शालिग्राम के साथ विवाह की शुरुआत हो गई और हर हर कार्तिक मास के महीने में इनका विवाह होता है।

 

तुलसी विवाह तिथि एवं शुभ मुहूर्त:-

  • एकादशी का आरंभ – 25 नवंबर, सुबह 2:42 मिनट से।

 

  • एकादशी की समाप्ति – 26 नवंबर, सुबह 5:10 मिनट पर।

 

  • द्वादशी का आरंभ – 26 नवंबर, सुबह 5:10 मिनट से।

 

  • द्वादशी की समाप्ति – 27 नवंबर, सुबह 7:46 मिनट तक।