महिला सशक्तिकरण या नारी शिक्षा पर निबंध

महिला  सशक्तिकरण या नारी शिक्षा पर निबंध

आज की ही नहीं पहले से ही नारी और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिया है जिनमे सामंजस्य होना जरुरी है।  जिससे गाड़ी सरपट दौड़ सके।  यदि इसमें एक भी पहिया बड़ा और दूसरा छोटा कर दिया जाए तो वो गाड़ी में आये असंतुलन की इस कल्पना कर ही नहीं सकते है।

शिक्षा जीवन के लिए परम आशीर्वाद है चाहे वह पुरुष हो या इस्त्री।  स्त्री को शिक्षा से वंचित करके हम उसे विकास के अवसरों से वंचित कर देते हैं जो कदापि उचित नहीं है। भारतीय समाज में इस्त्री को  अनेक सम्मानजनक नहीं दिया जाता है।  पुरुष में नारियल को उनके अधिकारों से वंचित रखा है कई सालों तक तथा उन पर अत्याचार किए हैं। आधुनिक युग में स्त्री अपने अधिकारों के लिए प्रति जागरूक है। उनमें स्त्री चेतना का प्रादुभर्व हुआ है। देश के अनेक अनेक समाज सुधारको , वर्तमान सरकारों , कुछ साहसी महिलाओं के नियोजित एवं संगठित प्रयासों केशव स्वरूप नारियों की दशा में सुधार संभव हुआ है।

महिला शिक्षा पर निबंध | Essay On Women Education In Hindi

समाज में स्त्रियों का अतियंत महत्व भूमिका है। भारतीय समाज में स्त्री की भूमिका को अत्यंत  महत्वपूर्ण माना जाता है तथा उसे उच्च स्थान प्रदान किया जाता है उसे देवी के रूप में माना जाता है। यहां तक कि कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वही देवताओं का वास होता है।

एक्ससीसी सृष्टि को उचित प्रकार से चलाने की क्षमता रखती है  संतान का पालन पोषण करने, अपने त्याग, धैर्य , परिश्रम , प्रेम , स्नेह , ममता एवं हर प्रकार से घर के वातावरण को जीवन एवं प्रगतिशील बनाने दिशा स्त्री का विशेष का विशेष महत्व होता है एक माँ , पत्नी व् पुत्री के रूप में वह अनेक दायित्वों का निर्वाह करती है।

नारी ही अपनी गृहस्थी को ठीक से चलाती हैं।

महिला /नारी  की स्थिति

प्राचीन समय में स्त्री का स्थान बहुत ही सम्मानीय था। स्त्री के बिना कोई भी यज्ञ अपुन माना जाता था। सीता ,सावित्री ,शकुंतला आदि उनके श्रेष्ठ नारियों में से एक थी। मध्यकाल में स्त्री की स्थिति दयनीय हो गई थी। उसे हेय दृष्टि से देखा जाने लगा उसके कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी ही रह गई थी। शिक्षा बाल विवाह सती प्रथा आदि अनेक कुरीतियों के स्वरूप स्त्री का जीवन नर्क के समान बन चला था।

मध्य काल के आते-आते नारी का स्थान पुरुषों की स्वार्थ – परता, काम – लोलुपता आदि के कारण न केवल गिर गया बल्कि उसके अधिकारों पर अंकुश लगते हैं कार्य क्षेत्र सीमित हो गया स्त्री को गंदे कपड़े की तरह बर्ताव किया जाने लगा साहित्यकार भी स्त्री को दोषो की खान अंग्रेजी नाटककार कभी तो यह तक कहां गए की व्यभिचार, दुर्बलता! तेरे नाम की औरत है विदेशियों की काम लोलुप निगाहो से बचने के लिए  पर्दा प्रथा प्रारंभ हुई।  स्त्री घर की चारदीवारी में कैद हो गई शिक्षा के प्रति भी स्त्री को उत्साहित किया गया।

 नारी शिक्षा के लिए  प्रयास`

आधुनिक काल के आते-आते जहां नारी को पैरों की जूती समझौता तथा अनेक अत्याचार उन पर किए जाते थे वह अब स्त्री जागरण स्त्री स्वतंत्रता का बिगुल बजा कर उठा था। स्वामी दयानंद के आर्य समाज ने नारी शिक्षा का मंत्र फूंका था राजा राममोहन राय ने सती प्रथा रघु भाई महात्मा गांधी ने स्त्री उत्थान का नारा दिया था अनेक समाजसेवी व्यक्तियों ने पति अब लाओ और वैश्यायो का उदय किया। सरकार में भी संविधान द्वारा स्त्री को शिक्षा प्रदान करने नौकरी करवाने आदि के समान अधिकार और अवसर प्रदान किया है महिला सुधार हेतु स्त्री निकेतन खोल दिए गए आज भी नारी डॉक्टर इंजीनियर अध्यापिका आदि क्षेत्रों में लगी हुई है पुलिस रक्षा विभाग आदि में भी उच्च पदस्थ रही है।

किरण बेदी अपना उच्च स्थान प्राप्त कर चुकी है दहेज प्रथा भी समाप्त करने के लिए कानून बन चुका है किंतु समाज  ने उसे अभी भी पुनसुपेण नहीं अपनाया है। आता: आने वाले दिनों वधू को चलाने घर से निकाल बाहर करने की घटना देखने सुनने में मिलती रहती है।

यदपि सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों व्यक्तियों द्वारा महिलाओं उधान के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं और किए जाते रहेंगे तथापि जब तक समाज अधिक जागरूक नहीं हो जाता स्त्रियों के प्रति तब तक पर्याप्त सफलता नहीं मिलेगी।

महिला  शिक्षा की आवश्यकता

स्त्री का संबंध दो परिवारों से होता है एक ओर तो परिवार के रूप में पिता के घर में रहकर अपने व्यक्तित्व से परिवार को प्रभावित करती है तो दूसरी ओर ससुराल मैं जाकर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालती है।

यदि स्त्री पढ़ी-लिखी जागरूक सचेत है तो वह दोनों को लोग को पवित्र कर देती है स्त्री संतान को जन्म देती है उसका संस्कार करती है तथा उसके भावी पीढ़ी को सवारने का पूरा अवसर मिलता है स्पष्ट है कि पढ़ी लिखी नारी इस दिशा में जो कार्य कर सकती है वह अशिक्षित नारी नहीं कर सकती।

वह जमाना दया जब हम लोग की सोच यह किसकी पुत्री तो पराया धन है इसे तो ससुराल विदा करना है। अतः इस  पर पैसा खर्च करने क्यों पढ़ाया जाए जब यह सोच बदल रही है कई परिवारों में तो पढ़ी-लिखी बेटियां माता-पिता का सहारा बन रही है और उस उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रही है जो पुत्र का कर्तव्य होता है।

शिक्षित स्त्री अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज का एक उपयोगी अंग बनती है। उसमें आत्मविश्वास आता है वह अन्याय और अत्याचार को चुपचाप सहन करना छोड़ देती है। स्त्री को आर्थिक रूप से स्वतंत्र तभी बनाया जा सकता है जब वह पढ़ी-लिखी योग्य बने।

जागरूक शिक्षित लड़कियां समाज के हर क्षेत्र में अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रही है। वह से किसी प्रकार से कम नहीं है । आज उच्च पदों पर वे सुशोभित है यह क्या इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में यह सब नहीं किया की स्त्री शिक्षा होने पर तथा इच्छा शक्ति से संपन्न होने पर राष्ट्रीय का नेतृत्व कर उसे गरबा गीत कर सकती है पुलिस सेवा विदेश सेवा आईएएस जैसे उच्च पदों पर कार्यरत भारतीय महिला में स्त्री शिक्षा के महत्व को सही है प्रतिपादित कर दिया है ।

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